कवितालयबद्ध कविता
न विवाह है ना फेरे है
बस एहसासों से हम तेरे है
निगाहें जब भी उठाई बस
तेरी बाहों के घेरे है
खुली हुई है आंखे
आंखों में सपने तेरे है
बस संघर्ष ही के घेरे है
हमे डर कैसा? हम बाहों में तेरे है
न विवाह है ना फेरे है
बस एहसासों से हम तेरे है
आती जाती इन सांसों में
मचलते एहसास तेरे है
सब कुछ तो इक तेरा ही है
सपने भी ना अब मेरे है
टूट रहा है हौसला दिन दिन
तकलीफों के डेरे है
इस जन्म ना सही अगले जन्म
बस यही उम्मीद घेरे है
न विवाह है ना फेरे है
बस एहसासों से हम तेरे है
सीता रामकृष्ण तिवारी "#maithili"
नागपुर महाराष्ट्र
दिनांक १५/२/२०२१