Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
माँ - Yasmeen 1877 (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

माँ

  • 261
  • 4 Min Read

जाती नहीं आंखों से सूरत तुम्हारी...

माँ !सुन रही है ना मेरे दिल की आवाज़, इतने साल
बीत गये पर तुम्हारा छोड़कर दुनिया चले जाना,
आज भी सबसे बड़ा झूठ लगता है जानती हूँ कहीं नहीं
तुम ! मगर आस-पास ही हो क्यों ऐसा लगता है ।।

आज भी पापा तुम्हारी चीज़ों को छूने नहीं देते,
कायदे-करीने से रखी ड्राइंग रुम की चीज़ें हों या
किचन की क्राकरी साफ़-सुथरी करके फिर वहीं रख
दी जाती हैं जैसे किसी संग्राहलय कीअनमोल धरोहर।।

मायके में हर जगह अक़्स तुम्हारा दिखता है,
वो दोड़-दौड़कर ज़रूरतें पूरी करना याद आता है,
हर सुबह से शाम न जाने कितनी बार ख़ुद में पाती हूँ
छवि तुम्हारी, क्यों जाती नहींआंखों से सूरत तुम्हारी ।।

डॉ यास्मीन अली
हल्द्वानी, उत्तराखंड ।

inbound2996043885937497903_1613235188.jpg
user-image
Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

ख़ूबसूरत और मर्मस्पर्शी

Yasmeen 18773 years ago

जी धन्यवाद

वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg