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पुरूष की वेदना - Anamika Sharma (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

पुरूष की वेदना

  • 318
  • 8 Min Read

पुरुष की वेदना

कुछ पुरुष स्त्री प्रताड़ित भी होते हैं
वो भी सहते हैं घुटते हैं
अवसादग्रस्त हो अंदर ही अंदर तड़पते हैं
सुनते हैं हर रोज़ एक नया ताना
वो झेलते हैं प्रतिदिन रूह को भेदती यातना
दिल चित्कार करता है उनका भी
सीना दर्द और तड़प से जब भर जाता है
तब वे शिकार बनते हैं हृदयाघात के
और फिर एक दिन वे मुक्त हो जाते हैं सारे कष्टों से और मुक्त कर भी जाते हैं

कुछ पुरूष भी अलगाव का दंश झेलते हैं
नर्म मुलायम गद्दे शूल से चुभते हैं उन्हें
अकेली तन्हा रातें उन्हें भी डरातीं हैं
सपनों में अक्सर डर कर पसीने पसीने हो जाते हैं जब वे
उस वक्त एक आलिंगन चाहते हैं सुकून भरा
चाहते हैं संगिनी के संग निर्विघ्न नींद
पर पलंग का दूसरा सिरा खाली ही रहता है
गृहस्थी की गाड़ी के कल पुर्ज़े जंग खा गए
उनींदी आँखों से खुद को उठा सुबह की चाय बनाते हैं वे हमेशा दो कप बिना शक्कर की
फीकी चाय भाने लगी है अब , मिठास से उबकाई जो आने लगी है उन्हें अब

कुछ पुरूष पिता होने का दर्द भी सहते हैं
हर दिन की फरमाइशों को पूरा करते करते
थक कर चूर हो जाते हैं फिर भी चप्पलें घिसते हैं अनवरत
पर उनके लाड़ले सन्तुष्ट नहीं होते उनसे कभी
उनके पापा ने कुछ नहीं किया कभी उनके लिए
दोस्तों के पापा कितने अच्छे हैं , सुनकर दुखते हुए दिल को कसकर पकड़ लेते हैं
सुख सुविधा ऐशोआराम का हर सामान बिछा देते हैं
और बदले में उन्हें मिलता है अपमान और तिरस्कार
सुपर हीरो बनने की नाकाम कोशिशें उनकी कोशिकाओं को ही रक्त रंजित कर देती हैं

क्योंकि कुछ पुरूष, पुरूष होने का खामियाजा उठाते हैं ताउम्र

©®
अनामिका प्रवीन शर्मा
मुम्बई

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Naresh Gurjar

Naresh Gurjar 3 years ago

लाजवाब रचना

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत सुंदर रचना

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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