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बचपन में - Arvind Singh (Sahitya Arpan)

कवितादोहाछंद

बचपन में

  • 241
  • 9 Min Read

नमन-------साहित्य अर्पण एक पहल
आयोजन-----------चित्र प्रतियोगिता
विषय----------------------स्वैक्षिक
तिथि---------------०४
/02/2021
वार-----------------------मंगलवार
विधा--------------------------गीत
मात्राभार-------------------16,14

#बचपन_में

खेल खेलते मिल बचपन में,पेड़ों पर चढ़ जाते थे।
याद न आती भूख प्यास भी,देर शाम घर आते थे।।

समय से पहले घर से निकलें,रम जाते थे खेलों में।
घुटते थे सब विद्यालय में,घुटते सब जस जेलों में।।
तिरछी नजरें पण्डित जी की,भाँप छात्र सब लेते थे।
झर - झर बहते अश्रु नयन से,पोंछ गुरू जी देते थे।।
मिट जाता था दर्द सकल ही,गुरुवर गोद उठाते थे।
खेल खेलते मिल बचपन में,पेड़ों पर चढ़ जाते थे।।

जब छुट्टी हो विद्यालय से,डण्डा तोड़ें जंगल से।
सोनू मोनू चिन्टू मिन्टू ,भिड़ जाते थे मंगल से।।
थूक लगाकर पत्थर फेंके,ऊपर टास उछलता था।
टास हार कर मायूसी हो,हिय में क्रोध उबलता था।।
साथ निभाते सभी खिलाड़ी,फिर से दौड़ लगाते थे।
खेल खेलते मिल बचपन में,पेड़ों पर चढ़ जाते थे।।

दौड़ लगाकर डंडी पकड़ें,सकल पाँव में छाले थे।
हाँफ -हाँफ कर क्षिति पर बैठें,चित्र नैन में काले थे।।
खेल रचाते मिल उपवन में,सूरत भोली भाली थी।
कूद - कूद कर चढ़ें पेड़ पर,रही शाम की पाली थी।।
जुटते सकल खिलाड़ी वन में,गोला एक बनाते थे।
खेल खेलते मिल बचपन में,पेड़ों पर चढ़ जाते थे।।

दल बनता था मैदानों में,सुबह-शाम की बेला में।
धमा चौकड़ी शोर मचाकर,मौज लूटते मेला में।।
टोली बनती बीच बाग में,मिल खेलें गिल्ली डण्डा।
जीत बिना ही जोर लगाते,लहराते विजयी झण्डा।।
चिन्ता कभी न उर में आती,विजयी होकर गाते थे।
खेल खेलते मिल बचपन में,पेड़ों पर चढ़ जाते थे।।

चढ़कर पतली डालों पर,बच्चे खेल जमाते थे।
बच्चे गिरते बीच धरा पर,जब भी नजर घुमाते थे।।
माली काका अगर न देखें,उपवन में करते चोरी।
डण्डा लेकर काका दौड़ें,तब भाग पकड़ते खोरी।।
पेड़ों पर चढ़ जामुन तोड़ें,तोड़-तोड़ सब खाते थे।
खेल खेलते मिल बचपन में,पेड़ों पर चढ़ जाते थे।।

अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तरप्रदेश

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत सुंदर

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

आपकी रचना प्रतियोगिता में ऐड नही हुई।

Arvind Singh3 years ago

कैसे होगी बतायें

प्रपोजल
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