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समाज के दिखावटी मुखौटे - Madhu Andhiwal (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेरणादायकलघुकथा

समाज के दिखावटी मुखौटे

  • 301
  • 7 Min Read

बिषय----# संवेदना
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समाज के दिखावटी मुखौटे
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रेलवे स्टेशन के बाहर यात्रियों की भीड़ लगी ही रहती है। जब भी निकलो ऑटोरिक्शे ,टैक्सी ,खाने पीने के ठेले सबकी भीड़ दिखाई देती है। हाथ फैलाये बच्चे बड़े भिखारी भी यात्रियों घेर लेते हैं।
मीता भी प्रतिदिन ट्रेन से यात्रा करती थी क्योंकि जिस उसकी नौकरी ही ऐसी थी । मीता प्रतिदिन एक युवा महिला को स्टेशन के बाहर चुप बैठे देखा करती थी । शायद वह कुछ मानसिक विक्षिप्त थी और गर्भवती भी थी । बस एक गुड़िया उसके पास थी । ठंड का प्रकोप अपनी चरम सीमा पर था । कुछ दिन से वह उस महिला को देख रही थी वह सबसे हाथ जोड़ कर उस गुड़िया को दिखाती थी पर सब उसे अनदेखा करते थे तथा हंसते हुये चले जाते थे । मीता ने कुछ सोच कर उससे बात करने की कोशिश की पर वह बस उसको देखती रही और गुड़िया को प्यार करती रही । आज मीता सोच कर गयी थी कि शाम को आकर कहीं इसके ठहरने की व्यवस्था करायेगी पर मीता को आज लौटने में देर होगयी थी । वह जब बाहर आई तो काफी भीड़ एक जगह एकत्रित दिखाई वहाँ पहुँच कर देखा शायद उसके प्रसव वेदना हुई होगी और किसी ने उसकी मदद नहीं की और उसने तड़प तड़प कर अपने प्राण त्याग दिये । उसी के पास एक नवजात शिशु का मृत शरीर व गुड़िया पड़ी थी ।
मीता यह देखकर दंग रह गयी क्या इस समाज में इतने संवेदन हीन लोग हैं । एक अबला लाचार विक्षिप्त महिला की कोई मदद के लिये आगे नहीं आया । वाह रे समाज के दिखावटी मुखौटे ।
स्व रचित
डा. मधु आंधीवाल

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

मर्मस्पर्शी

Madhu Andhiwal4 years ago

Thanks

दादी की परी
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