कहानीसामाजिक
दोष
"इसमें किस का दोष निकालू? सारी गलती मेरी है।ग्लेशियर टूटकर गिरेगी,इस बात की सभी चिंता करते रहते थे।और मैं ..मैंने वहीं बांध बैराज में गिरीश को काम पर भेज दिया!मुझे चेत नहीं रहा !मेरी मति मारी गई!।भाई बैजनाथ,मैंने तुम्हारी सलाह पर भी अमल नहीं किया, कर लिया होता ,तो आज यह दिन देखना नहीं पड़ता!"कहता हुआ सूरज नाथ पछाड़ें खाकर गिर रहा था।
गिरीश, उसके छोटे बेटे ने जब फोन पर सूचना दी कि कोरोना के खतरे की वजह से उसकी फैक्ट्री बंद हो गई है। उसके मकान मालिक ने उससे कमरा भी खाली करवा लिया है। कोई और काम इस दौरान मिलेगा नहीं।तब उसने आनन-फानन उसे यहां,चमोली में अपने पास बुला लिया।जो भी रुखा -सूखा है, मिल बांट कर खा लेंगे, मगर बच्चे को परदेस में कहां छोड़ देता ,अकेला!
मगर यह खतरा मुंह बाए सामने आ जाएगा इसके लिए कौन तैयार था? सरकारें विकास चाहती हैं।विकास के पीछे विनाश छुपा है, उसे नहीं पहचान पातीं ?लाख विज्ञानियों ने कहा कि बांध ना बनाएं, बैराज ना बनाएं ,कुदरत से खिलवाड़ ना करें। कितने तो आंदोलन हुए।सात साल पहले भी ऐसी ही आफत से लोग गुजरे थे, मगर याद किसे रहता है...?सिर्फ उन्हें, जिन पर गुजरती है!
आंखें बंद हैं सूरज नाथ की, कोरों से आंसू बह रहे हैं।अपने... उसके अपने पहाड़ उसके बच्चे की जान कैसे ले सकते हैं!पहाड़ों की खुश्बूदार हवा ... इनकी खुशबू तो वैसी ही थी ...जीवन देने वाली ना..ना ..वह जीवन ले नहीं सकती!
अचानक वह उठ बैठा, मानो किसी आवाज से चौंक गया हो।" इन्हीं सड़कों पर साइकिल से फर्राटा भरा करता था,गिरीश!मैं पूछता गिरीश ,तुम बड़े होकर क्या बनोगे? कहता, डाकिया।
तब हम सब हंस पड़ते थे।दादू उसे चिढ़ाते," अरे भाई, पढ़ लिख कर तो डाकिया ही क्यों,कुछ और क्यों नहीं?"
वह कहता ,"वह जो लाल पेटी वहां लगी है ना, वहां से जब डाकिया खत निकालता है और अपने कंधे पर थैला टांग कर टुनटुन साइकिल की घंटी बजाते हुए निकलता है, तो कैसे तो आप सब आंखों में एक चमक और आशा लेकर बाहर निकल आते हो। क्या आप सभी इंतजार में नहीं रहते हो कि आपका कोई पत्र आएगा ?
तो डाकिए का मतलब,आशा लाने वाला। आशा का संदेशवाहक। तो मैं वैसा ही बनना चाहता हूं।मेरे आने से सबके अंदर आशा का फूल खिल जाए, निराशा दूर हो जाए ।""उसकी भोली बातें सुनकर सभी खुश हो जाते,मानदादा। कहां गया मेरा, गिरीश? कहां गया वह मेरा आशा का संदेशवाहक?"कहकर फूट-फूटकर रोने लगा सूरज नाथ।
" सुना,रैणी में तो ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट के बैराज का नामोनिशान तक नहीं बचा है।वैसे फिलहाल कुछ कहना ठीक नहीं है। मेरी तो नींद गड़गड़ाहट से टूटी। लगा चट्टान खिसक रही है, पहाड़ से।"नौटियाल ने कहा।
"अरे हटो,हटो देखो कौन आ रहा है? भारत- तिब्बत सीमा पुलिस के जवान हैं!सुनो, क्या कहते हैं?"भीमराज ने सबको शांत कराया।
"मुबारक हो आपके इलाके के बारह के बारह लड़कों ने 6:30 घंटे तक टनल के भीतर मौत से लड़ाई लड़ी और जिंदगी की जंग जीत गए! अभी वे अस्पताल में हैं। चिंता की कोई बात नहीं है, शीघ्र ही वे आपके बीच होंगे।हम उनकी हिम्मत की दाद देते हैैं। टनल के अंदर 3 मीटर तक पानी और मलबा भर गया था।इन्होंने ऊपर लगे सरिया को पकड़ कर खुद को बचाए रखा और हम उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने में कामयाब हो सके।"
"अरे साहब, आप तो हमारे लिए देवदूत हैं, हमारे भगवान हैं! क्या मैं अपने बेटे से मिल सकता हूं?"
" हां, हां क्यों नहीं ?"
"गिरीश बेटा, अब तो मुझे भी तेरा वह डाकिया बनने का विचार ही ज्यादा सही लगता है। डाकिया- आशा का वाहक, पत्र में छिपी आशाएं!
गीता परिहार
परिहार