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व्याकुल मन - Anjani Tripathi (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

व्याकुल मन

  • 292
  • 3 Min Read

उस पार क्षितिज के जाना है
मन की कोमल पंखुड़ियों पर
जब हुआ कुठाराघात कोई
तब अश्रु की धारा बह निकली,
जब रहा न मेरे साथ कोई
अब खुद का संबल बन जाना है
उस पार क्षितिज के जाना है

जिन संग खुद का नाता जोड़ा
उन अपनों ने ही पल-पल तोड़ा
नयनों में नींर अधरों पे हंसी
दुनिया को दिख लाना है
उस पार क्षितिज के जाना है

खुद के अंदर की उदासी को
जग की खुशियों में क्यों ढूंढा
मन के अंदर कस्तूरी थी
बाहर मृग बनकर क्यों ढूंढा
जब काली निशा घनेरी हो,
झंझावातों ने घेरा हो
तब श्याम का दीप जलाना है
उस पार क्षितिज के जाना है

अंजनी त्रिपाठी
स्वरचित मौलिक
16/08/2020

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Anjani Tripathi

Anjani Tripathi 4 years ago

धन्यवाद सर

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

भावपूर्ण..!

प्रपोजल
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