कवितानज़्म
अल्प में भी पूर्ण का वरदान देती हूँ
मैं प्रकृति अपने बच्चों पर बड़ा ध्यान देती हूँ
मुझसे ही बने हैं ये पशु प्राणी सब लोग
सेहत मेरी बिगाड़ रहे जिनको रखती हूँ निरोग
काटते हैं जड़े मेरी मेरे ही जनमें मानव
नोच नोच खाते हैं मुझको ये बर्बर दानव
एक हाथ भी जो करे सुरक्षा सबकुछ देती हूँ वार
मैं दोनों हाथों की छांव से जीवन देती हूँ सँवार
सुनो हे मानव दानव सुनलो, ये पेड़ ये फूल ये जल ये मिट्टी ये हवा ये धरा सब मेरी है,
विनाश तुम्हारा निश्चित है बस हाथ हटाने की देरी है
मैं कोमल हदृय ममतामयी मैं हूँ करूणा का सागर
रखोगे अगर निष्पाप मन, भर दूंगी तुम्हारी गागर
~~ नरेश बोकण गुर्जर ~~
हिसार, हरियाणा