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मैं प्रकृति हूँ - Naresh Gurjar (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

मैं प्रकृति हूँ

  • 340
  • 4 Min Read

अल्प में भी पूर्ण का वरदान देती हूँ
मैं प्रकृति अपने बच्चों पर बड़ा ध्यान देती हूँ

मुझसे ही बने हैं ये पशु प्राणी सब लोग
सेहत मेरी बिगाड़ रहे जिनको रखती हूँ निरोग

काटते हैं जड़े मेरी मेरे ही जनमें मानव
नोच नोच खाते हैं मुझको ये बर्बर दानव

एक हाथ भी जो करे सुरक्षा सबकुछ देती हूँ व‍ार
मैं दोनों हाथों की छांव से जीवन देती हूँ सँवार

सुनो हे मानव दानव सुनलो, ये पेड़ ये फूल ये जल ये मिट्टी ये हवा ये धरा सब मेरी है,
विनाश तुम्हारा निश्चित है बस हाथ हटाने की देरी है

मैं कोमल हदृय ममतामयी मैं हूँ करूणा का सागर
रखोगे अगर निष्पाप मन, भर दूंगी तुम्हारी गागर

~~ नरेश बोकण गुर्जर ~~
हिसार, हरियाणा

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

सुंदर

Naresh Gurjar3 years ago

धन्यवाद मैम

तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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