कविताअतुकांत कविता
#तुम षुरष हो.....
हालाँकि हक नहीं है पुरुषों को
कमजोर पड़ने का.....
बचपन से तालीम दी जाती है तुम्हें!
कभी कमजोर मत पढ़ना।
"क्योंकि तुम मर्द हो,
तुम रो नहीं सकते।
समाज हँसेंगे तुम पर...."
और वही तालीम उसे....
एक दिन पत्थर बना देती है।
जो कहलाता है समाज के सामने
"वीरपुरुष...."
पर जब #प्यार से अगर कोई
#आलिंगन लगाए तो,उसके अंदर का
कोमल पुरुष पिघल पड़ता है.....
मोम की तरह!
अपना गम बाँट पड़ता है.....
कि मुझे भी दर्द होता है।
मुझे भी किसी के सहारे और
प्यार की जरूरत है.....
ना जाने ऐसी कितने पुरुष!
अपने अंदर मे घुटन लिए फिरता है।
और वही घुटन उसे अंदर ही अंदर
खा जाती है.....
पर प्यार में वह ताकत होती है
जो चट्टान को भी पिघला दे.....
आलिंगन से युवा! मानो एक बालक
जैसा बन जाता है और यह.....
#आलिंगन.....एक माँ का बेटे के प्रति,
पिता का बेटे के प्रति, पत्नी का पति के प्रति,
बेटी के पिता के प्रति...... हो सकते हैं।
और जो जरूरी भी है......।
@चम्पा यादव
31/01/2021