कविताअतुकांत कविता
शीर्षक:जाड़े की धूप
भली लगे है धूप देखो जाड़े का प्रताप
लोग ठिठुरने हैं लगे,मांगे सूरज का ताप।
पक्षी नीड़ों को भागे,कुछ ने किया प्रवास
गौएँ गौशाला में दुबकीं राहत की न आस।
शीतलहर से ठिठुरते सूर्य न जब दें साथ
गोंद,तिल,पिन्नी के लड्डू तब-तबआते याद ।
गर्म लबादे की चाहत,और सूरज की तपन
सर्दी की बेदर्दी ने पकड़ाई अंगीठी की शरण।
शक्ति संचयकाल में विटामिन डी मिले भरपूर
ऋतु का आनंद लें,हो नववर्ष का जश्न जरुर।
बीतेगी शीत-ऋतु ,पुनि आएगी बसंत बहार
सर्दी की छुट्टी होगी रखें उम्मीद खरी हरबार।
गीता परिहार
अयोध्या