कहानीसामाजिकऐतिहासिकप्रेरणादायक
जैसी करनी वैसी भरनी
दादी ने नाक मुंह सिकोड़ते हुए, चश्मा उपर चढ़ाते हुए पूछा," मैं कहती हूं यह कौन उल्टी गंगा बहा रहा है?
पीछे से मुँह बिचकाते मगर बेहद अदब से बहु ने कहा, "ऐसा कुछ नहीं है, मां जी।"
दादी भी कहां की पीछे रहने वाली थी बोलीं, "उड़ती चिड़िया के पर गिन लूं, समझा क्या है मुझे ?"मेहुल ने दादी को बाहों में भर कर उठा लिया बोली,"बस,बस आपसे कोई जीत सकता है,दादी?
"कहे देती हूं जैसी करनी वैसी भरनी। अरे,मनुष्य हो या देवता सभी को अपने- अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है |भले ही आप कोई काम चोरी छिपे करें या सबके सामने ईश्वर की नज़र से कोई नहीं बचता |"
मेहुल ने चुहल करते हुए कहा,अब वो ज़माना बदल गया,अब तो बुरा करने वाले ऐश करते हैं,भले, जीवन भर कोल्हू के बैल की तरह पिसते हैं।"
"बस,बस जब भीष्म पितामह को अपने कर्मो का किया भुगतना पड़ा,जो गंगा पुत्र थे, साधारण मनुष्य नहीं थे,तब हमारी क्या बिसात !"
"अब उदाहरण दिया है तो कथा भी सुना दो, प्यारी दादी।"मेहुल ने मनुहार करते हुए कहा।
" हां, हां जिससे मैं वह बात भूल जाऊं जो शुरू हुई थी!"दादी का क्रोध शांत होने वाला नहीं था।
" नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ था,अब सोते समय अपना मूड ना खराब करो और अच्छे से यह कहानी सुना दो, रोज की तरह।"मेहुल ने दादी के गले में बाहें डाल दीं।
"अब इनसे तो मैं कल निपटूंगी, चल आ, तो सुन,अष्ट वसुओं में से द्यु नामक वसु एक बार पृथ्वी लोक पर वसिष्ठ ऋषि के आश्रम में पत्नी संग आए, यहां उनकी पत्नी को कामधेनु गाय भा गई। वे उसे अपने साथ स्वर्गलोक ले जाने की हठ करने लगीं। द्यु वसु ने पत्नी को समझाने के बहुत प्रयास किए। उस समय गुरु वशिष्ठ अपने आश्रम में नहीं थे। उनकी आज्ञा के बिना गाय को ले जाना चोरी कहलाएगा, किंतु पत्नी की हठ के आगे वे कुछ ना कर सके और कामधेनु को लेकर बैकुंठ चले आए।
लौटकर जब गुरु वशिष्ठ ऋषि को ज्ञात हुआ तब उन्होंने द्यु से कहा,"चोरी और हरण जैसे काम तो मनुष्य किया करते हैं, इसलिए मेरा श्राप है कि तुम मनुष्य हो जाओ।इस श्राप को सुनते ही आठों वसुओं ने वशिष्ठजी की प्रार्थना की कि वे ऐसा न करें, तब उन्होंने कहा,अन्य वसु तो वर्ष का अंत होने पर मेरे शाप से छूट जाएँगे, किंतु द्यु को अपनी करनी का फल भोगने के लिए एक जन्म तक मनुष्य-लोक में रहना पड़ेगा। यह सुनकर वसुओं ने गंगाजी के पास जाकर उन्हें वशिष्ठजी के शाप का ब्योरा सुनाया और प्रार्थना की कि "आप मृत्युलोक में अवतार लेकर हमें गर्भ में धारण करें और ज्यों ही हम जन्म लें, हमें पानी में डुबो दें।अब जब गंगाजी शांतनु राजा की पत्नी बनी, उन्होंने सात पुत्र पानी में डुबो दिए।शांतनु लाचार थे कारण कि गंगाजी ने उनसे ऐसे कामों में बाधा न देने का वचन आरम्भ में ही ले लिया था। अंत में आठवीं संतान उत्पन्न होने पर जब गंगाजी ने उसे भी डुबाना चाहा तब राजा ने उनको ऐसी निष्ठुरता करने से रोका। गंगाजी ने राजा को वसुओं को वशिष्ठ के शाप का हाल कह सुनाया। फिर वे राजा को वह बालक सौंपकर अंतर्धान हो गईं। यहीं बालक द्यु नामक वसु था जो आगे भीष्म नाम से प्रसिद्ध हुआ, जिन्हें कई वर्षो तक मानसिक एवं शारीरिक यातनाओं को भोगना पड़ा |"
"दादी, इससे यह शिक्षा भी मिलती है कि हमें अपने कर्मों पर नियंत्रण होना चाहिए, आप एक वादा करें कि आप अपने क्रोधित कर्म पर नियंत्रण करेंगी और कल फिर इस मुद्दे को नहीं उठाएंगी, वादा?"
"बहुत चतुर हो, चलो वादा रहा, मगर आज हुआ क्या था?"
"कुछ भी नहीं, छोड़िए, जिसकी जैसी करनी, पड़ेगी उसको वैसी भरनी।"
गीता परिहार
अयोध्या