लेखआलेख
#राष्ट्रीय_बालिका_दिवस
लोग कहते हैं....."वो माइका था यह ससुराल है"
पर मेरा घर कहाँ है?
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बालिका दिवस का मक्सद तभी संपन्न होगा।जब हम बेटियों को बोझ ना समझकर, उसे अपने घर का चिराग समझेंगे।
जन्म लेते ही उसे पराई ना कहकर, अपने घर का बजूद समझेंगे। शादी के लिए पैसा ना जुटाकर उसे आत्मनिर्भर बनाने की सोचेंगे।
घर से विदा होते ही जिम्मेदारी छुटी ना सोचकर। जिस घर में बचपन से जवानी बीती उसमे उसका अधिकार मानेंगे।
उस घर में उसका हक देंगे। ताकि वह कभी भी आकर रह सके।उसे बेबस और मजबूर ना होना पड़े।कि इस दुनिया में उसका अपना कोई घर नहीं।और उसकी कमाई में उसके माँ-बाप का भी हक होगा। तभी सही मायने में #बालिका_दिवस का मक्सद संपन्न होगा।
ताकि वह जब शादी के बाद वापस घर जाए। तो उसे मेहमान जैसा व्यवहार ना किया जाए। आते ही उसके जाने के बारे में ना सोचा जाए। उसे ताने ना सुनना पड़े कि उसका घर अब ससुराल है। यहाँ उसका कोई अधिकारी नहीं, यह एहसास ना दिलाया जाए। क्योंकि वह भी उसी घर की संतान है जब बेटों को उस घर पर अधिकार है तो बेटियाँ का क्यों नहीं ?
इस घर की बेटी हूँ माँ!
पराई ना कहना....
विदा तो कर रहे हो, पर
हक से वंचित ना करना....
बापू! बसेरा ना उजाड़ना!
शाख हूँ में तेरी.....
विदा कर भूल ना जाना।
@चम्पा यादव
24/01/2021