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कवितालयबद्ध कविता
जनवरी का महीना ये ठंडी फिजाएं कोहरे की चादर चलती सर्द हवाएं कड़ाके की ठंड सर्दी खूब सताए रूह में सिहरन तन सह ना पाये ठिठुरती बदन को रजाई खूब भाये सूरज की किरणें जो मिल नहीं पाए ये सर्दी की महीना तन मन को सताए @©✍️ राजेश कु० वर्मा 'मृदुल'
वाह वाह क्या बात है
सादर धन्यवाद
ठंड की बात है
बहुत खूब
बहुत-बहुत धन्यवाद एवं सादर आभार आदरणीया