कविताअतुकांत कविता
जनवरी की ठंड बहुत सताती है
जब माँ तेरी याद आती है
विद्यालय से आने के बाद
अपने हाथों से धूप में तू खाना खिलाती थी
ठंड ज्यादा होने पर हमें
शॉल में अपनी छुपाती थी
माँ जनवरी की ठंड बहुत सताती है
नहलाकर तू हमे रजाई में बैठाती थी
ठंड न लग जाए हमे
खूब स्वेटर पहनाती थी
माँ तेरी बहुत याद आ रही है
यह ठंड मुझे बहुत सता रही है
हाथ से अपने स्वेटर बनाती थी
नए-नए डिजाइन से उन्हें सजाती थी
अब कोई नही बनाता वह स्वेटर मेरे लिए
ना ही तेरी तरह कोई शाल में छुपाता है
माँ एक बार गले लगा जा
लौट कर मेरे पास आ जा
फिर न यह जनवरी सता पाएगी
जब मेरी माँ मुझे गले लगाएंगी
बहुत सुन्दर रचना..! माँ के आंचल की गर्मी से ठंड भाग जाती है.
धन्यवाद अंकल जी