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चेहरा - Mamta Gupta (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

चेहरा

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चेहरा
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सच बताऊँ तुमको एक बात!
नाराज मत होना तुम जनाब!!
लोग मिलते है हमेशा चेहरे पर चेहरे लगाकर।
काले मन पर सफेद झूठ की चादर ओढ़कर।
अब मुझे कोई अपना नही लगता ।
हर एक शख्स का चेहरा फरेबी लगता
जिस पर भी आँख खोलकर भरोसा किया
बस हर शख्स से दगा ही मिला
जिसको समझकर सच्चा हमदम
सुनाने लग जाती अपने सारे गम
लेकिन आजकल कहाँ लोगो मे
इंसानियत नजर आती है
घड़ियाली आँखो में आँसू भर
सिर्फ ये दुनिया झूठी हमदर्दी जताती है।
मौका मिलते ही न जाने क्यों
बातों ही बातों में मजाक बनाती है।
ये जालिम दुनिया है साहब पल पल
रंग बदलती नजर आती है।

ममता गुप्ता✍️

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