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वो अजनबी - Mamta Gupta (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

वो अजनबी

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एकदिन एक अजनबी से यूँ मुलाकात हो जाना
उसकी प्यारी सी मुस्कान देख,मेरे दिल का खों जाना

भोली सी सूरत देखकर ,बस!!उसका ही हो जाना
उस अजनबी से बात करने के लिए तरकीबें निकालना।।

दिन रात बस उसी के बारे में सोचना..
हर पल याद कर बस आहे भरना।

दिन ब दिन उसकी याद में तपडते रहना।
बस उसकी एक झलक पाने को तरसते रहना।

कर सकूं अपने प्यार का इकरार,खुदा से अर्जी करना।।
शायद खुदा का जल्दी ही अर्जी को कबूल कर लेना

जिसे ज़िंदगी मान चुके, एकदिन उसी ज़िंदगी से मिलना।।
मिलकर उसे अपने दिल का हाल सुनाना।।

कितना चाहता है दिल उसे यह मुश्किल था समझाना।
मेरी बात मेरे जज़्बात,सुनकर उसका जोर जोर से हँसना

प्यार औऱ तुमसे,कभी अपनी शक्ल आईने में देखना।।
बेवकूफ इंसान, उस अजनबी का बेतुका सा बोलना।।


यह सब सुनकर मेरे दिल का मूक सा हो जाना
झट से दिल के अरमानो का आँसू में बह जाना।

क्या हक नही है मुझ गरीब को मोहब्बत करने का।
बस यही दिल मे ख्याल का बार बार आना।

सच मे प्यार की कद्र नही करता है यह जमाना।
कभी प्यार का इकरार न करना क्योंकि एकदिन दिल है टूट जाना।।

ममता गुप्ता

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