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कुमाऊं का उत्तरायणी पर्व
मकर संक्रांति को देश के विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में इसे उत्तरायणी कहते हैं। क्योंकि इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और उसकी उत्तरायण गति प्रारंभ हो जाती है। यह त्यौहार ऋतु परिवर्तन का द्योतक है।
कुमाऊं में आटे, घी और गुड़ के मिश्रण को खजूर, घुघुते, ढाल- तलवार, अनार, पूरी, डमरु आदि का आकार देकर सुई धागे में संतरे के साथ पिरो कर माला बनाई जाती है। बच्चे सुबह-सुबह माला गले में डालकर 'काले कौवा काले, घुघूती माला खाले' गाकर कौवे को बुलाते हैं। पूरे साल भर नदारद रहने वाले कौव्वे भी इन दिनों आश्चर्यजनक रूप से प्रकट हो जाते हैं।
दुनिया भर में प्रसिद्ध बागेश्वर का उत्तरायणी मेला सरयू गोमती नदी के तट पर बागनाथ मंदिर के पास लगता है। लोग संगम में स्नान करते हैं। इसे नदियों के संरक्षण का पर्व भी कहते हैं।
मेले का मुख्य आकर्षण विभिन्न प्रांतों की प्रदर्शित वस्तुएं होती हैं। श्रद्धालु संगम पर जनेऊ, मुंडन आदि कर्मकांड संपन्न करवाते हैं। इस दिन तिल और गुड़ का सेवन और खिचड़ी का दान किया जाता है।उत्तरायणी मेले का ऐतिहासिक भी महत्व है क्योंकि क्रांतिकारियों ने बंधुआ मज़दूरी के उन्मूलन की हुंकार सर्वप्रथम यहीं से भरी थी।
उत्तरायण में सूर्य की किरणें औषधि का काम करती हैं। धूप स्नान से हड्डियां मजबूत होती हैं, रक्तचाप सामान्य रहता है, चर्म रोग और गठिया रोग में फायदा मिलता है। वर्तमान समय में जब अधिकांश लोग विटामिन डी की कमी से ग्रसित हैं तो ऐसे में सूर्य स्नान का महत्व बढ़ जाता है। हमारे हर त्योहार के पीछे कोई ना कोई वैज्ञानिक सोच अवश्य शामिल रहती है।