कहानीप्रेरणादायक
ऑफिस में लंच टाइम था। अंजलि डाइनिंग हॉल में बैठी थी। जाड़े का मौसम था और इन दिनों सर्दी कुछ ज़्यादा ही थी। वह कैबिन में जाकर गोभी पराठे ऑर्डर दे चुकी थी। वह सोच ही रही थी कि आज चाय की जगह कॉफी पी ली जाए। तभी उसकी बगल वाली टेबल पर उसी के ऑफिस का कलीग आकर बैठा। बड़ी ही तहज़ीब से उसने अंजलि को हाय बोला और अपना परिचय देते हुए अपना नाम अजय बताया। बातों का सिलसिला शुरू हुआ और दोनों ने साथ मिलकर काफी पी। धीरे धीरे दोनों अक्सर साथ बैठकर लंच टाइम बिताया करते थे। घनिष्ठता बढ़ने के बाद दोनों ने एक दूसरे से अपने घर परिवार की बातें भी शेयर की।
अजय दूसरे शहर से था। उसके पिता का बहुत बड़ा व्यापार था। परंतु उसने इंजीनियरिंग करने के बाद नौकरी करने को प्राथमिकता दी। वही अंजलि भी यूं तो दूसरे शहर से थी परंतु काफी वर्षों से यही रह रही थी। उसके साथ में रिटायर्ड माता-पिता भी थे। एक बड़ा भाई था जो काफी पहले विदेश में जाकर बस गया था। बड़ी बहन का भी विवाह हो चुका था और वह अपने ससुराल में व्यस्त थी। चूंकि अंजलि अविवाहित थी तो उसका सारा ध्यान माता-पिता पर ही रहता। इसी वजह से वह अपना विवाह भी टाल रही थी। कुछ ही समय में अंजलि और अजय में अच्छी दोस्ती हो गई। दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह समझने लगे थे। अंजलि की मां ने आज फिर उससे विवाह कर लेने का ज़िक्र किया। अंजलि ने कुछ समय और मांगा। अजय का मन पढ़ना चाहती थी।
क्या अजय विवाह के बाद उसके माता-पिता के साथ उसके घर में रहने आएगा या उसके माता-पिता अजय के घर रहने जाएंगे...?
हमारे समाज की परंपरा को ध्यान में रखते हुए दोनों ही बातें मुश्किल थी।
एक दिन अजय ने अंजली से उसकी भावी योजना के बारे में पूछा। अंजलि ने बताया कि विवाह तो उसकी भी प्राथमिकता है मगर बड़े दोनों भाई बहन अपनी-अपनी गृहस्थी में व्यस्त हैं और वह अपने माता पिता को किसी भी तरह बेसहारा नहीं छोड़ना चाहती।
उसने सीधा सवाल पूछ ही लिया,"अजय, शादी के बाद मेरे माता-पिता भी मेरे साथ रहेंगे। क्या तुम्हें स्वीकार है...?
अंजलि वे मेरे भी माता पिता के समान हैं। तुम निश्चिंत रहो। दामाद भी बेटे के ही समान होता है।
अजय का ये इक़रार अंजलि को एक गज़ब की तसल्ली दे गया।
अमृता पांडे