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कुछ ख्वाब अधूरे से - Madhu Andhiwal (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

कुछ ख्वाब अधूरे से

  • 310
  • 8 Min Read

कुछ ख्वाब अधूरे से
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मेरा वजूद कोई छोटी कहानी नहीं था ,
बस पन्ने जल्दी भर गये ....
जिन्दगी में ख्वाब देखने का सबको अधिकार है पर जरूरी नहीं वह पूरे हो जायें । मेरी भी जिन्दगी इसी तरह की है। आज ये वाक्य देख कर 50 साल पहले की सारी बातें चल चित्र की तरह घूमने लगी । एक तितली की तरह उड़ती सपने देखने ही शुरू किये कि मै एक बहुत बड़े होटल को बनाऊगी किसी हिल स्टेशन पर वहाँ मेरा रौबदार व्यक्तित्व होगा बहुत से पर्यटको से मुलाकात होगी एक सनक थी मेरे अन्दर क्योंकि बहुत उपन्यास पढ़ती थी पर सब खो गये मात्र 15 साल की उम्र में पिताजी ने शादी करदी जब कि शहर की बच्ची बहुत अच्छा परिवार भाई बहनों में सबसे छोटी भाई और उनका परिवार यू.एस.ए में रहता था । मां भी पुराने समय की मिडिल थी पर पता ना पिताजी को शादी की इतनी जल्दी क्यों थी । शादी होकर ससुराल पहुँचे ग्रामीण परिवेश छोटे ननद देवर वहाँ हम बड़े होगये । हां पति एम.एस.सी गोल्ड मेडलिस्ट थे । मेरी मां की हार्दिक इच्छा थी कि मै पढ़ू । मेरे पतिदेव ने उस इच्छा का बहुत सम्मान रखा । मुझे बी.ए.एम.ए. बी.एड , पी.एच.डी , एल. एल.बी , कराया । बच्चो के साथ मेरी शिक्षा भी चलती रही । मै अपना सपना तो नहीं पूरा कर पाई पर मैने अपने बच्चो को उनके जो मन में था स्वतंत्र रखा । उनको डा. इंजीनियर बना दिया ।
आज जब सब जिम्मेदारी निपटा कर अपने लिये सोचा तो लगा शायद ख्वाब पूरे ना होने के लिये भी देखे जाते हैं पर आज मै राजनीति में हूँ इतनी डिग्री भी हैं सब पतिदेव के सहयोग से और बहुत कुछ बच्चो के सहयोग से ।
मेरा बेटा हमेशा मुझे कहता है " कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता "
ये सत्यता भी है क्योंकि हिल स्टेशन पर होटल ना सही घर की रसोई को ही होटल समझ लेती हूँ ।

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बढ़िया

दादी की परी
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