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निर्धन पिता - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

निर्धन पिता

  • 237
  • 5 Min Read

धनाभाव के बावजूद
एक निर्धन पिता
बच्चों की जेब में टॉफी डालकर
बच्चों के चेहरे पर
छाई ख़ुशियों को
निहारता है एकटक।।

धनाभाव के कारण
ख़ुद नवीन पोशाक
भले क्रय न कर सके पर
निर्धन पिता
हर त्यौहार में
खरीदकर लाता है
बच्चों के लिए
नवीन पोशाक।।

धनाभाव के कारण
डॉक्टर के पास
नहीं जा पाता है, निर्धन पिता
पर बच्चों की तबीयत
जरा-सी बिगड़ जाने पर
किसी तरह रुपयों का प्रबंध कर
शीघ्रातिशीघ्र ले जाता है
बच्चों को डॉक्टर्स के पास।।

धनाभाव के कारण
निर्धन पिता, टूट जाता है
कभी-कभी पूर्णतः अंतस तक
पर फिर संभालता है ख़ुद को
किसी तरह।।

धनाभाव के कारण
कभी-कभी भूखे पेट
भी सो जाता है रातों में
निर्धन पिता, पर बच्चों के लिए
किसी तरह दो वक्त की रोटी
का इंतजाम कर देता है।।

धनाभाव के कारण
अपनी अनगिनत ख्वाहिशों
की आहुति देता है निर्धन पिता
ज़िंदगी की अनगिनत कठिनाइयों को
तन पर सहन करने के बावजूद भी
बच्चों के मुख पर मुस्कान खिली रहे
इसलिए निर्धन पिता
अपना हर दर्द
भूल जाता है।।

©कुमार संदीप
मौलिक,स्वरचित

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

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