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जर्रानवाजी बनाम मेहमाननवाजी - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

जर्रानवाजी बनाम मेहमाननवाजी

  • 296
  • 3 Min Read

हमने, बिनबुलाये,
अपने घर आये
मेहमान को
आते ही एक शेर परोसा

उन्होंने भूखी नजरों से
हमको कुछ ताककर
इधर उधर कुछ झाँककर
फिर अचानक अपने
मन में कुछ सोचा
और देखते ही देखते
लगा दिया मौके पर चौका,

" वाह वाह क्या बात है
वाह वाह क्या बात है
ये शायद आपसे मेरी
सबसे हसीन मुलाकात है "

हमने कहा कुछ
लखनवी अन्दाज में,
अपने दिल में "शुक्रिया" के
उमड़ते आगाज़ से,

" ये खाकसार किस काबिल है,
ये तो है हुजूर जर्रानवाजी आपकी "

अपनी घडे़नुमा तोंद पर
हाथ फेरते वे बोले,

" जर्रानवाजी का मतलब
ये जाहिल कुछ समझा नहीं
मुझे बताओ किधर छुपी
मेहननवाजी आपकी "

द्वारा : सुधीर अधीर

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत खूब

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