कविताअन्य
आंदोलन
सुना था सन् 1947 से पहले
आंदोलनकारियों को पिटवाया जाता था
आज भी मारा/पीटा जाता है.
जनता की आवाज कल नहीं सुनी जाती थी
आज भी नहीं सुनी जाती है.
कानून कल भी बनाए जाते थे
आज भी बनाए जाते हैं.
कल सख्ती से पालन होता था
आज सख्ती नहीं हो पाती है.
जनांदोलनों को कल विद्रोह कहा जाता था
आज संसद की अवमानना बताया जाता है.
फूट डालो और राज करो की नीति
कल भी जारी थी, आज भी जारी है.
तो सोचो ये कैसी आजादी है
क्या सत्ता हस्तांतरण को
आजादी कहा जाए?
या
सब कुछ खामोश सहा जाए.
यदि नहीं तो
इसे गुलामी का हस्तांतरण मानिए
वक्त है फिर इंकबाल
और
वंदे मातरम गाइए.