कहानीलघुकथा
पेंटिंग का बहुत शौक था रोहन को। इतना शौक कि पेंटिंग को ही अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया। इसके अलावा कुछ और उसे सोचता ही नहीं था। जब भी देखो, प्रकृति के विभिन्न नज़ारों को निहारता रहता और अपनी नज़रों के कैमरे में क़ैद कर लेता । फिर उन्हें अपनी कल्पना में साकार कर रंगों से जीवंत कर देता।
किसी भी निर्जीव वस्तु पर उसकी कूची इस तरह चलती कि वह सजीव लगने लगती। प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों को अपने ब्रश से साकार रुप दिया था उसने। कई महापुरुषों के चित्र बनाएं, नारियों के सौंदर्य को अपने कूची में रंग भर के निखारा। वह पूर्णतः रंगों को समर्पित था। कूची, रंग और कैनवास, मानो यही उसका जीवन था।
लोगों से सुना था कि एक बार किसी स्त्री के मोहपाश में न जाने कैसे बंध गया था वह परंतु बात नहीं बनी। वह रंग और कूची की घोर दुश्मन जो ठहरी। वह उसे अपना चांद कहता परंतु चांद की शीतलता से वह कोसों दूर थी। प्रेम की भावना को समझने में पूर्णता असफल थी वह। रोहन ने बहुत प्रयास किया उसे अपने प्रेम के रंग में रंगने का परन्तु सब व्यर्थ। रोहन को हमेशा सुकरात का पारिवारिक जीवन का जीवन याद आ जाता।
आज चंद्रमा कुछ ज़्यादा ही सुंदर लग रहा था। वह अपना ब्रश और पेंट की छोटी बाल्टी लेकर बालकनी में आ गया और चांद को अपने मनचाहे रंगो से रंगने लगा।
अमृता पांडे