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नई सुबह - अजय मौर्य ‘बाबू’ (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

नई सुबह

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नई सुबह

जिंदगी डूब रही है
सांझ की बेला की तरह
उदास अनमनी सी
मैं स्वयं को अकेला पाता हूं
दर्द की सीमा रेखा बन जाता हूं
ढ़ूंढ़ता हूं खुशियों के काफिले
और
अपने अस्तित्व की परछाई
मैं स्वयं को ढ़ूंढ़ रहा हूं
इस विस्तृत आकाशमंडल में
सांझ और गहरी हो रही है
बिल्कुल मेरी तरह
सोचता हूं
इस गलत मौसम के विरुद्ध
लड़ना ही होगा
उदासियों से
नई सुबह के लिए......

अजय बाबू मौर्य ‘आवारा’

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