कवितालयबद्ध कविता
#नमन मंच
#साहित्य अर्पण
#विषय -मेरा शहर
#दिनांक -04/01/2021
#विषय -मेरा शहर
आओ मिलवाऊँ मैं तुम्हें अपने आपसे
जयनगर से बन गया देखो मैं जयपुर
सवाई जयसिंह जी की आँखों का तारा मैं जयपुर
विद्याधर भट्टाचार्य्या द्वारा वास्तु एवं शिल्प कला के साथ मेरा श्रृंगार किया गया
जंतर मंतर को मेरा ह्रदय और मस्तिष्क बनाया गया
आओ मिलवाऊँ मैं तुम्हें अपने आपसे -1
नाहरगढ़ -जयगढ़ -जलमहल -सिटी पैलेस ये मात्र इतिहास नहीं
इनके सीने में काफी खट्टे मीठे प्यार मोहब्बत बलिदान के राज दफ़न हैं
राजमंदिर मात्र सिनेमाघर नहीं एशिया में सिनेमाघरों का सरताज है
रजवाड़ी है शान मेरी तभी तो मेरी सड़कें सबसे चौड़ी
आओ मिलवाऊँ मैं तुम्हें अपने आपसे -2
कई ऐतिहासिक फिल्मों ने -प्रेम और डाकुओं वाली फिल्मों ने मेरे शहर की विरासत पर शूटिंग करके वाही वाही बटोरी
जयपुर के हाथी दांत -आभूषणों - ज्वैलरी -खानपान -सत्कार -कपड़ों आदि ने अंतर्राष्ट्रीय साख बटोरी
मैं हर मौसम में अपना पूरा असर छोड़ता हूँ
और मैं छोटी काशी के नाम से अपने आपको पुजवाता हूँ
आओ मिलवाऊँ मैं तुम्हें अपने आपसे -3
अब मैं बड़ा हो गया हूँ -आधुनिक हो गया हूँ
तांगे -रिक्शे छोड़ कर मेट्रो में चलने लगा हूँ
कहीं जमीन के नीचे तो कहीं ऊपर चलने लगा हूँ
अब आप पहले की तरह मुझे बाहों में नहीं भर सकते
क्यूंकि अब मैं किलोमीटरों में बढ़ गया हूँ
मल्टीस्टोरी वाला हो गया हूँ
पर एक अच्छी बात बताऊँ की आज भी मेरी गिनती भारत के शांत शहरों में होती है
आओ मिलवाऊँ मैं तुम्हें अपने आपसे -4
मेरा बचपन यहाँ जवानी यहाँ
अल्हड मस्ती भरी जिंदगानी यहाँ
यहाँ की हर एक गली मैंने ऐसे नापी
जैसे मैंने तेरे बदन की हर अंगड़ाई को नापा है
मोती डूंगरी गणेश से गण गणेश तक
आमेर की शिला माता से चाकसू की शीतला माता तक
जयपुर के आराध्यदेव श्री गोविंददेव जी से
सांगानेरी गेट और चांदपोल हनुमान तक
न्यू गेट के कोडेश्वर भैरु जी से झारखण्ड महादेव तक
पतंग काटते उड़ाते लूटते समय से लेकर आज त्योहारों के नाम पर एक परंपरा मात्र रह गई -जाने कहाँ गए वो दिन
आओ मिलवाऊँ मैं तुम्हें अपने आपसे -5
यहीं नौकरी यहीं व्यापार यहीं राजनीती
यहीं अकेलापन यहीं विवाह यहीं बच्चे
यहीं बच्चों को बड़ा होते देखना और
बच्ची के बच्चे
इसी शहर में इस उम्र में बेगुनाह गुनहगार बन जाना
दसियों मकानों का बनाना और बिक जाना
साइकिल -मोपेड -स्कूटर -बाइक कार से सफारी तक
और फिर उन्हीं सड़कों पर पैदल हो जाना
आज इस शहर को छोड़ कर वनवासी हो गया हूँ
मुठी से फिसलती रेत की तरह हो गया हूँ
उस पुराने गीत की तरह हो गया हूँ -हमसे का भूल हुई जो ये सजा हमका मिली ....
आओ मिलवाऊँ मैं तुम्हें अपने आपसे -6
कहाँ जन्म लिया कहाँ बचपन और जवानी गुजरे
और कहाँ बुढ़ापा बीतेगा
सही है समय अपनी गति से बढ़ रहा है और मैं कहाँ से कहाँ आ गया
कल तक राजा शाही जिंदगी जीने वाला आज फ़क़ीर की माफिक जी रहा है
मुझे तो फकीरी में भी सुकून है पर अनब्याही बच्ची बच्चा बीवी माँ और बाप इनका क्या
ये तो भाई दुनियादारी से बंधे हैं -इन्हें क्या मतलब फकीरी से
मैंने इस शहर का ही नहीं अपना बदलाव भी देखा
एक तूफ़ान को शांत देखा -हरे भरे वृक्ष को वीरान देखा
कल तक लोन ले लो -लोन ले लो पीछे दौड़ने वाले बैंक वालों को
आज किश्त नहीं तो पुलिस की धमकी देते देखा
जिंदगी ने इस शहर ने हर रंग दिखाया
समय ने सबसे बड़ा पाठ पढ़ाया की -बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया
कई बार उस गजल को गुनगुनाता हूँ की -ये दौलत भी ले लो -ये शोहरत भी ले लो ,भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी मगर मुझको लौटा दो वो बचपन का सागर वो बारिश की मस्ती वो आँखों का पानी
आओ मिलवाऊँ मैं तुम्हें अपने आपसे -7
आज केवल उस सतगुरु के हवाले है ये संपूर्ण जिंदगानी
वो चाहे तो तूफ़ान से कश्ती निकाल दे
वो चाहे तो सूखे वृक्षों पर हरियाली बरसा दे
बस एक इल्तिजा मेरे मालिक की अंतिम सांस से पहले
हर धार्मिक -पारिवारिक -सामाजिक हर ऋण से मुक्त हो जाऊं
जैसे खाली हाथ आया था ,वैसे ही खाली हाथ जाऊं
आया था तो चेहरों पर खुशियां थी ,जाऊं तो आँखों में नमी हो
दुनिया से कुछ अलग करके जाऊं
परिवार के लिए तो जानवर भी करता है
समाज को -दुनिया को -तेरा तुझको अर्पण करके जाऊं
और क्या मिलवाऊँ मैं तुम्हें अपने आपसे
बहुत कुछ जान लिए तुमने मेरे और मेरे शहर के बारे में
चलो खुश रहो -आबाद रहो -सावधान रहो और हाँ अपनी दुआओं में मुझे याद रखना -8
स्वरचित/मौलिक
विकास शर्मा शिवाया
जयपुर (राजस्थान )
कार्य -Affirmations Coach -Author-Actor-Anchor-Blogger-Business Consultant-Kavi-Motivational Speaker- Political & Social Activist -Spirtual Counselor-Social Worker-Singer (Bhajan-Bollywood-Gajal )
ई मेल -ujagarsamacharbaba2020@gmail.com
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