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सिसकियां..... - अजय मौर्य ‘बाबू’ (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

सिसकियां.....

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सिसकियां.....

खामोश सिसकियां
सुन लेता हूं पर
कहता नहीं ।
भरोसा नहीं है कि
तुम अपना समझते होगे।
यकीन मानो
जिन दिन यकीन हो जाएगा,
कि तुम्हें यकीन है मुझ पर
उस दिन
पुरानी सिसकियों से छुड़ा लूंगा
नई सिसकियों से बचा लूंगा।
तब तक
जो कह रही हैं आंखें
वह सुनने की कोशिश करो
इस तरह सिसकियों से बची रहोगी ।

अजय बाबू मौर्य ‘आवारा’

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