कवितालयबद्ध कविता
आग
ये आग जो मुझ ,में बह रही है,
ये आग जो तुझ ,में बह रही है।
मेरे शब्दों की आग, तेरे ये सुरीले राग,
मेरे ख्वाबों की बात, तेरे मन के जज्बात।
मेरे मन की आवाज,
तेरे मन के साज।
ये आग जो भर दी है मैंने ,
वक्त के इन सुनहरी पन्नों पर।
समय के पंख लगाये,
धीरे धीरे, चुपके चुपके।
काल के माथे में बैठकर,
वक्त की सुईयों में टंगकर,।
दूर दूर तक फैल जायेगी,
युगों युगों तक फैलती जाएगी।
हवाओं को सुनायेगीं,
सारी दुनिया को बताएगी।
एक मैं भी रहता था ,कभी इस दुनिया में,
एक तू भी रहता था , इसी सुंदर दुनिया में ।
कितनी बातें करते थे, कितना हम हँसते थे,
हम भी कभी तुम्हारी, तरह ही जिन्दा थे।
वक्त के पन्नों में भरी ये आग,
इतिहास एक नया बनायेगी।
बनकर हमारी आवाज,
अमर हमको कर जायेगी।
हम काल की आंखों में, फिर से मुस्कुरायेंगे,
सदियो बाद भी हमारे ,शब्द गुन- गुनायेगें ।
सदियो तक ये आग हमको,जिंदा रख जायेगी,
वक्त के सुनहरी पन्नों में,सहेजकर हमें जायेगी।
वक्त के पन्नों में भरी, ये मेरे मन की बात,
वक्त के पन्नों में भरी ,ये तेरी आवाज।
कालजयी बन जायेगी, युगों युगों तक सबको,
हमारी बातें सुनायेगी, हमारी बातें बताएगी।
स्वरचित व मौलिक रचना।
राजेश्वरी जोशी
उत्तराखंड
बढ़िया
🙏🙏धन्यवाद आदरणीया
??