कविताअतुकांत कविता
कविता - उन्मुक्त
उन्मुक्त कौन नही होना चाहता?
सभी उन्मुक्त होना चाहते हैं।
फिर चाहे वह एक छोटा सा बच्चा हो
या फिर वयस्क।
उन्मुक्तता में हंसी हुई नौनिहालों की किलकारी
किसे पुलकित नही करती।
एक उन्मुक्त किलकारी आसपास के वातावरण
व सभी सुनने वालों के हृदय को
अन्दर तक झंकृत करती है।
उन्मुक्त पंछी जब कलरव करते हैं,
तो रात्रि का अवसान होता है,
और एक खुबसूरत सुबह आपको बांहे फैलाये
अपने प्राकृतिक बाहों में भर लेती है।
पतंग भी जब उन्मुक्त हो मिजाज में होता है
तो आसमान छूने लगता है,
यह अलग बात है कि उसकी डोरी
किसी और के हाथों में हो
पर अपने प्रिय के हाथों में वह और उम्दा
व ऊँचा सफर तय करता है।
यह उसके प्रिय का प्रेम ही है
जो इतने आगे उसे आसमान तक ले जाता है
और सामने वाले संघर्ष से उसे अच्छी तरह
पेंच लड़ाना सिखाता है।
इस लड़ाई में अगर पतंग कट भी गई तो
कोई बात नही,इस संघर्ष के झटके से वह और उँचा
व उम्दा अंतरिक्ष में तैरना सीख जाता है
और आखिर में पूर्णतया स्वतंत्र हो जाता है।
स्वरचित-वन्दना सिंह-वाराणसी