कहानीऐतिहासिक
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धोखा
"आज हम इतिहास के झरोखे से झांकने की कोशिश करेंगे।जानेंगे एक ऐसी महिला को जो अपनी कला का जौहर दिखाते हुए धोखे से मार दी गई।"
"कला का ही तो प्रदर्शन कर रही थी, फिर क्यों धोखे से मार दी गई ?"धीरज ने पूछा।
"तुम्हारा नाम ही धीरज है, धैर्य नाममात्र नहीं, सब्र करो, कहानी शुरू तो होने दो।, चाचू,आप शुरू करिए।"शास्वत ने टोका।
"धीरज,बात उस समय की है जब वर्तमान नरवर नलपुर कहलाता था। वहां एक किला था जो आज भी है,यह नरवर का किला समुद्र तट से 1600 और भूतल से 500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।अब हम आते हैं कहानी पर,किले से ही इस कहानी का संबंध है।
एक प्रचलित लोक कथा के अनुसार नरवर के राजा थे नल।एक बार उनके दरबारी सुलक्षण ने उन्हें सूचना दी," महाराज,आपकी आज्ञा हो तो एक नृत्यांगना की कला का आयोजन किया जाए।"
"हां,हां क्यों नहीं मगर कौन है वो,और कैसी कला दिखाती है ?"
"महाराज वह बेड़नी समाज से आती है, उसकी कला की परख तो आप ही करेंगे।"
"ठीक है, देखते हैं।"
बस आयोजन हुआ। उसने बेमिसाल कला का प्रदर्शन किया।राजा वाह,वाह कर उठे। उन्होंने दोनों हाथों से मोती लुटाए। तभी साथ आए कलाकारों ने कहा,"यह तो कुछ नहीं, महाराज ये नरवर किले से किले के सामने वाली ऊंची पहाड़ी तक कच्चे धागे पर नाचती हुई जा सकती है।"यह असंभव सी बात थी, राजा ने कहा ," यदि यह ऐसा कर दिखाएगी तो मैं अपना संपूर्ण राजपाट इसे सौंप दूंगा।"
मंत्री और सलाहकार ने लाख समझाने की चेष्टा की,राजा टस से मस न हुआ और अपना सम्पूर्ण राजपाट दांव पर लगा दिया।
कच्चे धागे पर, वह भी नाचती हुई,अविश्वसनीय !कुसुम ने विस्मय से कहा।
"हां। नृत्यांगना ने कहा,"महाराज यदि चाहें तो किसी भी धारदार हथियार से, कभी भी उस धागे को काटना चाहें तो काट सकते हैं।"
नृत्यांगना के दिए कच्चे धागे का एक सिरा नरवर किले की ऊंची पहाड़ी से और दूसरा किले के सामने वाली ऊंची पहाड़ी से बांध दिया गया।नृत्यांगना सधे कदमों से किले की पहाड़ी तक पहुंची और धागे पर पांव रखा... दर्शकों की धड़कन तेज़ हो गईं.., आखिर कच्चा धागा ही तो था, कभी भी टूट जाता और वह मीलों गहरी खाई में समा जाती!! मगर यह क्या, वह तो सधे कदमों से धागे पर चल नहीं रही,नाच रही थी, नृत्य प्रारंभ कर चुकी थी!! वह कभी भी गंतव्य के करीब पहुंच सकती थी.., राजा चिंतित हो उठे, सर्वस्व दांव पर लगा था!
उनका सर्वस्व,मतलब की सब कुछ जो हाथी, घोड़ा, पालकी...सब दांव पर लगा था!उमेश ने कहा।
बिल्कुल,राजा ने कुटिल दांव अपनाया, और उस धागे को काटने को एक अतिशय धारदार हथियार उठाया, यह क्या !धागे पर कोई असर ही नहीं हुआ!। उन्होंने जल्दी-जल्दी कई धारदार हथियार आजमाए, मगर नाकाम रहे क्योंकि बेड़नी ने अपनी मंत्र शक्ति से सभी हथियारों की धार बांध दी थी,और कोई भी हथियार उस धागे को काट नहीं पा रहा था।
राजा गलत कर रहा था।फिर क्या हुआ,चाचू?"जिगर की उत्सुकता चरम पर थी।
तभी एक चर्मकार उठा हिम्मत करके मंत्री से कहा,"मैं इसका तोड़ जानता हूं। मुझे महाराज के निकट जाने की आज्ञा मिले तो मैं इस संकट को दूर कर सकता हूं।"
मंत्री ने राजा से अनुमति ली।चर्मकार ने राजा को अपना वह औजार दिया जो जूते जोड़ने के काम आता था।जूता जोड़ने के काम में आने के कारण वह औजार अशुद्ध था,उस पर मंत्रों का प्रभाव नहीं हो सकता था।
ओह,तो उसी औजार ने एक अच्छे कलाकार की जान ले ली!ओम ने अत्यंत दुखी होकर कहा।
"हां,उस औजार से मंत्र- सिद्ध धागा कट गया और किले की ऊंचाई से नीचे गिरकर उस बेड़नी की मौत हो गई।
चाचू, कितना बड़ा धोखा! इस घटना से हम क्या शिक्षा लें ?घन्नू ने पूछा।
इससे हम यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी व्यक्ति की क्षमता पर संदेह नहीं करना चाहिए, दूसरी, यह कि शर्त लगाने से पहले भली-भांति विचार करना चाहिए, तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण कि कभी किसी को धोखा नहीं देना चाहिए।
चाचू ,राजा बहुत अन्यायी था।कहानी क्या यहीं ख़त्म हो गई ? क्या जनता राजा के इस कृत्य से आहत नहीं हुई, उन्होंने किसी तरह का विरोध नहीं किया?कोमल ने पूछा।
कोमल, तुम्हारी ही तरह जनता भी मर्माहत हुई। जिस जगह यह घटना घटी, जनता ने खुद उसी जगह एक मंदिर बनाया।जिसे आज लोढ़ी माता का मंदिर कहा जाता है। कहते हैं यह उसी नृत्यांगना की याद में बनाया गया था।
आज भी लोढी माता के दर्शन हेतु दूर- दूर से देश भर से लोग यहां पूजा करने के लिए आते हैं।
उस नृत्यांगना के साथ ऐसा छल! उसकी भरपाई के लिए उनका मंदिर बना कर पूजा -अर्चना करना श्रैष्ठ है अथवा उनकी कला को उनके साथ आगे बढ़ने का अवसर देना अच्छा होता?उर्मिला ने तनिक रोष से पूछा।
तुम्हारे प्रश्न तर्कसंगत हैं, उर्मिला, इतिहास में ऐसे असंख्य किस्से हैं , जिनका उत्तर किसी के पास नहीं है।शायद, नृत्याँगना के साथ हुए इस छल के कारण आज भी बेडिया समाज के लोग नरवर में नाचने के लिए आते हैं। नरवर के इतिहास से जुडी ऐसी अनेकों कथाएँ समाज में प्रचलित हैं।
मौलिक
गीता परिहार
अयोध्या ( फ़ैजाबाद)
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ओप्शन कहां है?