कवितालयबद्ध कविता
शीर्षक :- प्रतिक्षा
प्रतिक्षा करूंगा मैं तबतक ; जबतक तू मेरी हो न जाएं
मैं प्रेम करूंगा सिर्फ तुमसे ; चाहे क्यों न जग बागी हो जाएं....!
तू मेरी है, मैं तेरा हूँ ; चाहे जग माने न माने
प्रतिक्षा करूंगा मैं तबतक ; जबतक तू मेरी हो न जाएं....!!
तुमसे मैंने जीना है सिखा ; प्रेम की तुमने पाठ सिखाएं
तेरी प्रतिक्षा की शक्ति ने ; हमेशा मेरा मान बढ़ाएं....!
तू रूठे तो जग है रूठा ; जैसे मेरा प्राण सुखाएं
प्रतिक्षा करूंगा मैं तबतक ; जबतक तू मेरी हो न जाएं....!!
जब निकले आसूं तेरी आँखो से ; प्राण मेरा निचोड़ा जाएं
जब आहें भरती तेरी धड़कन ; सांसो की डोर मेरा टूट जाएं....!
जब मुस्काएं तेरी होंठ ने ; हर्षोल्लास मुझपर छा जाएं
प्रतिक्षा करूंगा मैं तबतक ; जबतक तू मेरी हो न जाएं....!!
अधूरा हूँ मैं बिन तुम्हारे ; काश तुझे अब समझ आ जाएं
जन्म-जन्मांतर का रिश्ता तेरा-मेरा ; तुझे छोड़ कहाँ हम जाएं....!
एक जन्म क्या सात जन्म तक ; हम रहेंगे आश लगाएं
प्रतिक्षा करूंगा मैं तबतक ; जबतक तू मेरी हो न जाएं....!!
ऋषि रंजन
दरभंगा (बिहार)
स्वरचित एवं मौलिक रचना