कहानीलघुकथा
लघु कथा
रजिया दर्जी
रजिया की कपड़े सिलाई की दुकान महीनों से बंद पड़ी थी, पति शकील रिक्शा चलाकर कुछ पैसे कमा लाता उसी से घर का गुजारा चल रहा था पिछले हफ्ते वह भी करोना की बलि चढ़ गया।
सर पर हाथ धरे रजिया सोच रही थी करोना में लोगों के खाने के लाले पड़े हैं कपड़े की सिलाई कराने कौन आयेगा इस साल तो उसका धंधा चौपट ही हो गया, ये मुआ करोना जब से आया है जिंदगी दुश्वार हो गई।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, कौन हो सकता है रजिया ने दरवाजा खोला, सामने 1 लंबी चौड़ी काया वाली महिला बोली जी रजिया टेलर आप ही है, हा बताइए, रज़िया ने जवाब दिया,।
हम एक एनजीओ में काम करते हैं कॉरोना से सुरक्षा के लिए सबको मास्क बांटने का काम कर रहे हैं, क्या आप हमारे लिए मास्क सिल सकती हैं, रजिया को तो मानो खुशी का ठिकाना नहीं जहां इतने दिन से उसकी दुकान बंद पड़ी थी और इस महामारी में भला कपड़े सिलाने कौन आएगा एनजीओ वाली मैडम जैसे भगवान बन कर आ गई, जी मैं जरूर सिल दूंगी आपके मास्क, महिला ने पहली बार केवल 10 मास्क सिलवाए, मास्क बहुत सुंदर बने थे वह दोबारा 100 मास्क का ऑर्डर लेकर आ गई , रजिया की काफी आमदनी हुई इतना तो वह पूरे महीने कपड़ा सिल कर भी नहीं कमा पाती जितना मास्क सिल कर कमा लिया, जहां एक तरफ कॉरोना महामारी में दुकान बंद हो गई था,आज उसी महामारी से उसका धंधा चमक गया, उसके बनाए हुए मास्क बहुत टिकाऊ और मजबूत थे कई और कंपनी से आर्डर आने लगे, और तो और उसको एक सहायक की भी जरूरत पड़ने लगी थी, पड़ोसी सकीना को भी उसने सहायक के तौर पर सिलाई के धंधे में लगा लिया, उसकी छोटी सी मासूम बेटी अफसाना इन सब से बहुत खुश थी क्योंकि उसे भी कुछ पैसे टॉफी खाने को मिल जाते बड़ी मासूमियत से उसने पूछा मां क्या करोना हमेशा रहेगा, ऐसा क्यों, फिर तुम ऐसे ही मास्क बनाओगी और हमें खूब पैसे मिलेंगे, ऐसा नहीं कहते प्यारी बच्ची, मैं अल्लाह मियां से दुआ करूंगी यह करोना जल्दी ही खत्म हो जाए, सब कुछ पहले जैसा हो जाए, फिर अब्बा भी लौट आएंगे क्या अम्मी, रजिया की आंखों में आंसू आ गए।
सरिता सिंह
स्वरचित ( गोरखपुर )उत्तर प्रदेश
रचना के साथ प्रस्तुत फोटो गूगल द्वारा प्राप्त है
आपने यदि यह रचना प्रतियोगिता हेतु लिखी है तो आप हैश टैग लगाना भूल गयी।