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लेख - बच्चो की सहजता छीन ली
'बचपन'स्मृति पटल पर आते ही मन भाव विभोर हो उठता है।बचपन कितना आनन्ददायक होता था। लड़के गेंद से तो कभी गुल्ली डंडे से खेलते थे वहीं लडकियां गुड़िया गुड्डो से खेलना पसंद करती थी।आइस पाइस बच्चो का मन पसंद खेल होता था।
सूर्यास्त होते ही बच्चे दादा दादी नाना नानी के पास जाकर कहानियां सुनते तथा प्रेरणा लेते थे।खुले आसमान मे सोते थे पहेलियां पूछते थे जिससे दिमागी कसरत होती थी। बिना उपकरण के खेल खिलौने जैसे रस्सी कूद, कबड्डी,खो खो, पकड़म पकड़ी आदि शारीरिक मानसिक रूप से दक्ष बनाते थे।घर के कामो मे सहयोग करते थे।
बच्चो का बचपन कितना सरल तथा सहज होता था। किसी भी तरह से बनावटीपन नही था। सभ्यता संस्कार से परिपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। बच्चो का काम खेलना-कूदना,कहानियां सुनना,खाना,सोना, शरारतें करना इत्यादि। पड़ोसी के बच्चो के साथ मिलकर धमाचौकड़ी करते।बच्चे स्वयं अपने हाथों से मिट्टी के खिलौने बनाते थे जैसे चकला बेलन, चूल्हा, पहिया, बैलगाड़ी, तांगा इत्यादि और मस्त रहते थे। साइकिल का टायर, लोहे की रिगं मिल जाती तो खुशी से फूले नही समाते थे। नंगे पांव पी पी करते हुए सरपट दौड़ते। बरसात मे कागज की नाव बनाकर तैराते, मेंढक की आवाजे सुनकर प्रसन्न होते थे।
अब बचपन मायूस तथा एकाकीपन हो गया है।दो या तीन साल के होते ही माता पिता बच्चो को आंगनबाड़ी, मांटेसरी में डाल देते है। माता पिता बच्चो को प्लास्टिक तथा इलेक्ट्रॉनिक खिलौने पकड़ाकर खुश होते है परन्तु बच्चे बहुत जल्दी ऊब जाते है।
आजकल बच्चो को टीवी कम्प्यूटर मोबाइल टैब की लत लग चुकी है। मोबाइल टैब पर बच्चो की अंगुलिया सरपट दौड़ती है। बच्चे इसके आदि हो चुके हैं जिसे छुड़ाना किसी नशे से भी भारी है। इसका बच्चो के शारीरिक मानसिक विकास पर बुरा असर पड़ रहा है।लाकडाउन होने से बच्चो का आनलाइन पढ़ना एक तरह से फिजूल है तथा यह चिंतन का विषय है
आजकल माता पिता बच्चो को बाहर खेलना तथा दूसरे बच्चो के साथ खेलने पर पाबंदी लगाते है। बहुत से माता पिता बच्चो को हर चीज रटा कर खुश होते है। बच्चो पर बहुत अधिक पाबंदी तथा अधिक टोका टाकी से बच्चो के बालमन पर बुरा असर पड़ रहा है तथा जो शारीरिक मानसिक विकास मे बाधा बन रहा है। बच्चो में सामाजिक विकास भी नही हो पा रहा है।हम अंदाजा लगा सकते है कि बच्चो की नैसर्गिक रूचि,अभिरूचि, सक्रियता व्यहवार आदि पर हम माता पिता ने ही लक्ष्मणरेखा खींच कर असहज स्थिति उत्पन्न कर दी है। वास्तव मे बच्चो का बचपन हमने छीनकर इनकी बालसुलभता सहजता ही छीन लिया है। हमे आत्ममन्थन करना होगा जिससे बच्चो तथा बच्चो के जीवन को सहज बनाया जा सके।
(यह लेख स्वरचित मौलिक तथा अप्रकाशित है जिसे मैं प्रियंका पांडेय त्रिपाठी प्रकाशित करने की अनुमति देती हूं)
प्रियंका पांडेय त्रिपाठी
प्रयागराज उत्तर प्रदेश
बहुत सुन्दर और वास्तविक आंकलन. पहले घर के सभी सदस्य बच्चों के साथ समय व्यतीत करते थे. सोशल मीडिया था नहीं. टीवी के कार्यक्रम भी सीमित किन्तु मर्यादित होते थे. बच्चे भावनात्मक रूप से घर के सभी सदस्यों से जुड़े रहते थे. अब एकल परिवार, गैजेट्स., माता पिता की अति व्यस्तता ने बच्चों को अकेला कर दिया है.
धन्यवाद सर