लेखअन्य
मैं तुम्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहता हूं ।।
अनामिका नई नई शादी करके आई थी
बहुत सारे सपने बहुत सारे अरमान लेकर आंखों में ख्वाब सजाए ,फिल्मों की तरह सोचा करती थी मेरा पति भी फिल्मों की तरह हर पल मेरे साथ रहेगा
जरा सी तकलीफ पर मेरा ख्याल रखेगा लेकिन यहां तो सब कुछ उल्टा ही चल रहा था।
अनामिका के सर में बहुत तेज दर्द था बहुत परेशान थी कहे भी तो किससे कहें
मां का घर छूट चुका था और पति के घर आई थी
किसी से अपने मन की बातें नहीं कर पा रही थी उसे लगा, कि उसका पति समझेगा दवाइयां लाकर देगा
जैसे फिल्मों में देखा करती थी सर दबा देगा , लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ पति ने तो देखा भी नहीं हुआ क्या है ?
सुबह से सर पकड़ कर बैठी है
किसी ने पूछा तक नहीं
मां के पास होती तो पूरा घर सर पर उठा लेती,क्या हुआ बेटा दवा ला दूं मां तेल लेके दौड़ती और यहां किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ता।
सुबह से शाम हो गई अनामिका ने घर का सारा काम निपटाया और अपने कमरे में आकर लेट गई
पति ने कहा अरे तुमने अभी तक खाना नहीं खाया।
अनामिका गुस्से में लाल हो रही थी लेकिन,
हिम्मत करके अनामिका ने कहा जरा सी तकलीफ पर सबके पति तो धरती आसमान एक कर देते हैं ऐसा मैंने सुना है जरा सी चोट लग जाए तो दवाई पट्टी मरहम लेकर दौड़ते हैं उनका कितना ख्याल रखते हैं और आप हैं कि आपको कोई फर्क नहीं पड़ता क्या आप मुझसे प्यार नहीं करते
बृजेश ने कहा तुम सचमुच पागल हो,
अभी तक मुझे समझ नहीं पाई मैं तुम्हें किसी का मोहताज नहीं देखना चाहता मैं तुम्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहता हूं मैं तुम्हें दुनिया की बुरी नजरों से बचाना चाहता हूं अगर छोटी-छोटी बातों पर फिक्र करने लगूंगा तो तुम कमजोर हो जाओगी सहानुभूति की तुम्हें आदत पड़ जाएगी यही मैं नहीं चाहता
तुम एक अबला नहीं हो स्त्री हो शक्ति हो कितनी बड़ी चुनौतियों का सामना तुम कितनी आसानी से कर लेती हो अगर मैं तुम्हारा हाथ पकड़े चलता तो तुम वह सफर कैसे तय कर पाती जहां तुम्हें खुद ही चलना पड़ता है ओ रास्ते कैसे देख पाते जहां मैं तुम्हारे साथ नहीं चल पाता तुम मेरी अर्धांगिनी हो मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं
अनामिका के आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे लेकिन दुख के नहीं खुशी के........
अंजनी त्रिपाठी
गोरखपुर उत्तरप्रदेश