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यादें - Madhu Andhiwal (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

यादें

  • 356
  • 15 Min Read

यादें -----
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सांची आज बहुत उदास थी । बीती बातें बीती यादें कभी कभी उसके मन को व्यथित करती थी । उसका बचपन कितने अभाव और कष्टों में गुजरा था । घर में बीमार मां और दो छोटे भाई बहन । बापू की बहुत छोटी सी पान की दुकान वह भी एक छोटे से गाँव में । सांची की उम्र भी केवल 15 साल थी । पढ़ने में होशियार पर भागते दौड़ते घर का काम निपटा कर स्कूल पहुँचना और रोज क्लास में देर से पहुँचना और अध्यापिका की डांट खाकर बाहर खड़े रहना पर वह सब सह जाती थी क्योंकि मां को सहारा देना उसके लिये जरूरी था पर जब उसका रिजल्ट आता तो अध्यापिका भी अचम्भित रह जाती क्योंकि वह हमेशा प्रथम आकर सबको पीछे छोड़ देती । अब वह भी उम्र के नाजुक दौर में आ चुकी थी । इन्टर की पढाई शुरू हो चुकी थी । पिछले कुछ दिनों से वह देख रही थी कि एक युवक रोज कालिज के गेट के बाहर आकर खड़ा रहता है। पहले तो उसने अधिक ध्यान नहीं दिया पर जब एक दिन उसने उसे ध्यान से देखा कि वह उसको देख कर मुस्करा रहा है तो वह शर्मा कर चुपचाप चली आई । धीरे धीरे दोनो में बातें होने लगी । घनिष्ठता बढ़ती गई। उसका नाम मोहित था वह इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था । दोनों दोस्त थे पर अपने उद्देश्य भी सामने थे । शाम को अक्सर दोनों नदी किनारे बैठ जाते थे । आज मोहित का रिजल्ट आने वाला था । मोहित आया बहुत खुश था उसका न. इंजीनियरिंग में आगया था । वह बहुत खुश हुई पर जब मोहित ने कहा कि वह कल चला जायेगा तब वह उदास हो गयी । मोहित बोला तुम अपनी पढाई और ध्येय पर ध्यान दो मै हमेशा तुम्हारा रहूंगा । बहुत दूर एक गाना बज रहा था " वो शाम कुछ अजीब थी ये शाम भी अजीब है ,वह कल भी आस पास थी वह आज भी करीब है। "
जिन्दगी फिर पुराने ढर्रे पर चल पढ़ी । उसका ग्रेजुएशन पूरा होगया । सीमित संसाधनो में ट्यूशन आदि पढ़ाकर वह सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुट गयी । मोहित की पढा़ई का आखिरी साल था । अपनी एक मित्र से पता लगा कि मोहित की दोस्ती किसी सेठ की लड़की से है । ये वह भी महसूस कर रही थी क्योंकि बहुत दिन वह कोई फोन नहीं करता था और वह फोन करती तो बहुत संक्षिप्त बात करता । बहुत दुखी होगयी और पूरा ध्यान पढा़ई में लगा दिया । उसकी मेहनत रंग लाई । वह सलेक्ट होगयी । आज उसकी पोस्टिंग इस नये शहर में होगयी । मां उसका साथ छोड़ कर जा चुकी थी । बापू भी अशक्त हो गये थे । बहन और भाई दोनो की पढाई चल रही थी । अब तो प्रमोशन होकर जिलाधिकारी का दायित्व उसके ऊपर था । कुछ फाइल उसकी मेज पर अभी उसका सेकेट्री रख कर गया था । उसने खोल कर देखा किसी सिविल इंजीनियर की फाइल थी । जिस पर कोई आरोप था । उसने कर्मचारी से कहा कि उन साहब को भीतर भेजो । वह फाइल पढ़ने में लगी हुई थी बोली बैठिये क्यों ना आपको निलम्बित कर दिया जाये वह साहब बोले मैडम एक बार तो मुझे मौका दीजिये । उसने पलट कर देखा वह मोहित था । मोहित भी उसे देखता रह गया । उसने बहुत कठोरता से कहा कि मै इस बार छोड़ रही हूँ । आगे किसी भी शिकायत पर कठोर कदम उठाने पर मजबूर हो जाऊंगी । वह बोझिल मन लिये घर आगयी । आंख बन्द करके उसी गाने की धुन सुन रही थी " ये शाम भी कुछ अजीब है वो शाम भी कुछ अजीब थी ,वो कल भी आस पास थी वो आज भी करीब है "
इतनी देर में कमला ने कहा मेम साहब सब काम हो गया में घर जा रही हूँ वह अतीत की यादों से बाहर आगयी ।
स्वरचित
डा.मधु आंधीवाल एड.
अलीगढ़
©

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

सुंदर सृजन

Madhu Andhiwal3 years ago

Thanks

दादी की परी
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