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अब मायके नहीं जाऊँगी - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

अब मायके नहीं जाऊँगी

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  • 7 Min Read

अब मायके नहीं जाऊँगी

प्रबोध बेटी सना को कहानी सुनाते सोचने लगता है," दस बजने को है , परिधि अभी तक ऑफिस से नहीं लौटी। ऐसे में कई आशंकाएँ घेर लेती हैं । उसका नया बॉस , कुछ ठीक नहीं। पत्नी को चेताया भी पर उसने टाल दिया कि वह निपट लेगी। रोज़ ही कुछ न कुछ काम दे देता है। यूँ तो परिधि पर उसे पूरा विश्वास है।वह किसी भी परिस्थिति से निपट सकती है। उसकी नौकरी भी ज़रूरी है। सना की स्कूल फ़ीस व फ़्लैट की किश्तों का तकाज़ा। परिधि ने भी सारी सीमाएँ तोड़ अपने स्कूली दोस्त से नाता जोड़ा है।उसने यह नहीं सोचा कि छोटी सी नौकरी में कैसे गुज़ारा होगा ?"
जैसे ही परिधि आती है, एक अलग ही गंध से प्रबोध आशंकित हो पूछता है, " ये क्या पीकर आई हो ?"
परिधि,"बस जूस पिलाया सर ने। कहते इससे थकान मिट जाती है। वो बॉस हैं मेरे। तुम्हारी बातों से भी जलन की गंध आ रही है।"
प्रबोध, " क्या कह रही हो परिधि? उसमे शराब मिली होगी। मैं जानता हूँ,तुम बहुत भोली हो।"
परिधि," तो ठीक है, मैं कल रिजाइन कर पापा के पास चली जाती हूँ। माफ़ी माँग पैसे लेकर फ़्लैट तुम्हें दे दूँगी। पापा उम्र के चलते बिजनेस नहीं सम्भाल पाते। तुम रहना अकेले।"
प्रबोध आगोश में ले समझाता है, " तुम छोड़ दो ये नौकरी प्लीज़। मैंने एक गणित व कम्प्यूटर की कोचिंग क्लास का सोचा है। तुम ठहरी गणित की मास्टर,मैं तुम्हारा मुनीम बन जाऊँगा।"
दोनों एक ही थाली में खाना खाते हैं। परिधि मुस्कुराकर कहती है, "अच्छा जी, अब मायके नहीं जाऊँगी।"
सरला मेहता

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Madhu Andhiwal

Madhu Andhiwal 3 years ago

बहुत सुन्दर

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर हल..!

दादी की परी
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