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खुद में खुद के लिए अभि ज़िदा हूँ मैं (स्वाभिमान) - Bhawna Sagar Batra (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

खुद में खुद के लिए अभि ज़िदा हूँ मैं (स्वाभिमान)

  • 323
  • 4 Min Read

मेरे माथे की बिंदी तेरे नाम की मोहताज नहीं रहेगी,
खुद में खुद के लिए अभि ज़िदा हूँ मैं ।
मेरे गले में मंगलसूत्र तेरे नाम का हो ये ज़रूरी नहीं,
एक सादा काला धागा,मेरी खुशी के लिए पहनूँगी मैं ।
मेरे हाथों में चूड़ियां रहे न रहे तेरे नाम की,
एक हाथ में घड़ी और दूसरे में आत्मसम्मान को रखूँगी
तुम्हारी लगाई झूठी दलीलों से नहीं हारूँगी मैं ।
खुद में खुद के लिए अभि ज़िदा हूँ मैं ।
जीत जाऊँगी जंग इस ज़िंदगी की अकेले ही ,
तेरे बिना भी बहुत कुछ कर सकती हँ मैं ।
मेरी खुशियां ,मेरा श्रृंगार
मोहताज नहीं है किसी के नाम के ।
खुद में खुद के लिए अभि ज़िदा हूँ मैं ।

©भावना सगर बत्रा
फरीदाबाद,हरियाणा

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कुलदीप दहिया मरजाणा दीप

कुलदीप दहिया मरजाणा दीप 3 years ago

बहुत ही गूढ़ अल्फाजों से सजी साहित्य लड़ी

Bhawna Sagar Batra3 years ago

जी शुक्रिया

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