कविताअन्य
मेरे माथे की बिंदी तेरे नाम की मोहताज नहीं रहेगी,
खुद में खुद के लिए अभि ज़िदा हूँ मैं ।
मेरे गले में मंगलसूत्र तेरे नाम का हो ये ज़रूरी नहीं,
एक सादा काला धागा,मेरी खुशी के लिए पहनूँगी मैं ।
मेरे हाथों में चूड़ियां रहे न रहे तेरे नाम की,
एक हाथ में घड़ी और दूसरे में आत्मसम्मान को रखूँगी
तुम्हारी लगाई झूठी दलीलों से नहीं हारूँगी मैं ।
खुद में खुद के लिए अभि ज़िदा हूँ मैं ।
जीत जाऊँगी जंग इस ज़िंदगी की अकेले ही ,
तेरे बिना भी बहुत कुछ कर सकती हँ मैं ।
मेरी खुशियां ,मेरा श्रृंगार
मोहताज नहीं है किसी के नाम के ।
खुद में खुद के लिए अभि ज़िदा हूँ मैं ।
©भावना सगर बत्रा
फरीदाबाद,हरियाणा
बहुत ही गूढ़ अल्फाजों से सजी साहित्य लड़ी
जी शुक्रिया