कवितालयबद्ध कविता
*आँसू*
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ये झील सी नीली आँखें
बोझिल सी...,
सूनापन लिए,
थकी हुई सी थी,
जो..,
डूबी हुई थी
यादों के भवंर में गहरे तक,
अचानक,
एक टीस -सी उभरी अंतस से
और ,
छलक पड़ी बूंद आँसू बनकर
इन झील सी नीली आँखों से ||
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब
©स्वरचित मौलिक रचना
07-12-2020 - 23:25hr.