कहानीसामाजिकप्रेरणादायक
जैसी दृष्टि...
इस दुनिया देखने का नजरिया हर व्यक्ति का अलग - अलग होता है।जैसी अच्छी या बुरी भावना हम उस वस्तु या व्यक्ति विशेष के प्रति रखते हैं,उसी दृष्टि से हम आस- पास का आंकलन करते हैैं,अपनी राय बनाते हैं।पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर व्यक्ति जो देखता है,वैसा अभिप्राय निकालता है, जो कभी - कभी सही नहीं होता।इस बात को मैं तुम्हें उदाहरस्वरूप समझता हूं।सुनो,
एक बार एक कवि हलवाई की दुकान पर पहुंचा,जलेबी और दही खरीदा और वहीं खाने बैठ गया।इतने में एक कौआ कहीं से आया और दही की परात में चोंच मारकर उड़ चला। हलवाई को बहुत गुस्सा आया उसने पत्थर उठाया और कौए को दे मारा।कौए की किस्मत ख़राब थी,पत्थर सीधे उसे लगा, वह मर गया।
इस घटना को देख कवि का कोमल हृदय जागा।वह जलेबी खाने के बाद पानी पीने पहुंचा तो उसने एक कोयले के टुकड़े से वहां एक पंक्ति लिखी:
"काग दही पर जान गँवायो" अर्थात
दही में चोंच मारने के कारण कौए को अपनी जान गंवानी पड़ी।
कवि के जाने के बाद वहां एक लेखपाल महोदय जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलम्बित हो गये थे, पहुंचे।कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नज़र पड़ी तो अनायास ही उनके मुंह से निकला,"कितनी सही बात लिखी है!" क्योंकि उन्होने उस पंक्ति को कुछ इस तरह पढ़ा:
"कागद ही पर जान गंवायो"
लेखपाल महोदय के दिमाग में उनके कागज़ चल रहे थे,अतः उन्हें 'काग दही' 'कागद ही' पढ़ने में आया।
तभी एक आवारा लड़का पिटा हुआ सा, वहां आया। ।उसकी निगाह भी उस कागज पर पड़ी।उसे भी लगा कितनी सच्ची बात लिखी है, काश,उसे ये बात पहले पता होती, क्योंकि उसने उसे कुछ यूं पढ़ा:
"का गदही पर जान गंवायो"
उस मजनूँ ने लड़की के कारण मार खाई थी।कष्ट होने पर लड़के को लड़की गदही जैसी लगने लगी।उसने दुखी होकर इस पंक्ति को वैसे पढ़ा।इसीलिए
"जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी"।
दूसरा उदाहरण है, जब गुरु द्रोणाचार्य ने अपने शिष्यों की दृष्टि की परीक्षा लेनी चाही तो उन्होंने दुर्योधन से कहा," जाओ दुर्योधन, राज्य में गुणवान व्यक्ति को ढूंढ कर लाओ।"
पूरे राज्य का भ्रमण करने के बाद उसने कहा," गुरुवर,मैंने समस्त राज्य का भ्रमण किया पर एक भी गुणवान व्यक्ति नहीं मिला,सब में कोई ना कोई दोष था।"
फिर उन्होंने युधिष्ठिर से कहा," जाओ, तुम राज्य से बुरे व्यक्ति को ढूंढ कर लाओ।"
लौटकर युधिष्ठिर ने कहा," गुरुदेव, मुझे तो राज्य में ऐसा कोई भी नहीं मिला जिसमें कोई गुण ना हो।'
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि यदि मनुष्य की चिंतन दृष्टि अच्छी है तो उसे सृष्टि सुंदर दिखाई देगी, यदि उसकी चिंतन दृष्टि में दोष है, तो उसे सृष्टि बुरी दिखाई देगी।दरअसल हम वह नहीं देखते,जो सच में होता है,हम उसे वैसे देखते हैं जैसे हमारे भाव और विचार उसके प्रति होते हैं।हम वह देखते हैं,जो हम देखना चाहते हैं।
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि ।