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झकास - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

झकास

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" झकास "

"क्यों जी, काहे ये सड़ा थोबड़ा बना के बैठे हो ? कुछ हुआ क्या ? आज
छटनी का आदेश आ गया क्या ? बोलो ना। " निशांत को चाय पकड़ाते ख़ुशी बोली।
" अरे हाँ बाबा , आ गया है। और मुझे तीन माह की पगार पकड़ा के नोटिस भी मिल गया है।" निशांत झल्लाते हुए चिल्लाया।
ख़ुशी दिलासा देती है, "ये तो होना ही था। पता था न तुम्हें पहले से। क्यों न हम आगे की सोचे।"
"हाँ, अब तुम यह भी कहोगी, सोच को बदलो तो सितारे बदल जाएँगे। बच्चे की पढ़ाई माँ की दवाई का क्या होगा ? ये क्या अटाला रखा है।"
"ये समोसे ,चाट आदि बनाने का सामान। बस कल से मस्त गरमागरम बनाएँगे। जैसे बाबा बेंचते थे ना। माँ ने मुझे अच्छे से समझा दिया है। याद है कितने धड़ल्ले से चलती थी हमारी दूकान।", ख़ुशी बोली।
और सचमुच चल पड़ा ख़ुशी का धंधा। निशांत के लिए खुल गई राह। वह कहता है,"माँ अच्छी बहु ढूंढ़ी तूने। बीबी बिंदास तो किस्मत झकास।" ख़ुशी, हाथों में समोसे की प्लेट लिए मुस्कुरा रही है।सरला मेहता

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

अच्छी रचना

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर सोच और क्रियान्वन

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर सोच और क्रियान्वयन

दादी की परी
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