कवितालयबद्ध कविता
कितनी जल्दी भूल जाते हैं
आखिर क्यूँ इतनी जल्दी भूल जाते हैं
क्यूँ मद के झूले में इतना झूल जाते हैं
कि इतनी जल्दी भूल जाते हैं
कितनी जल्दी भूल जाते हैं
नेता चुनावी वादों को
जनसेवा के इरादों को
जनता के जज्बातों को
देश के हालातों को
याद रखते सिर्फ अपने
स्विस बैंक के खातों को
बाकी सब कुछ भूल जाते हैं
वो तो चले ही इतनी दूर जाते हैं
कितनी जल्दी भूल जाते हैं
स्वार्थों की जोड़तोड़ में
आगे बढ़ने की होड़ में
अन्धाधुन्ध लम्बी दौड़ में,
तेज क़दमों की ताबड़तोड़ में
ना जाने किस निर्बल को
निर्दोष दीन-हीन दुर्बल को
रोज कुचलते और मसलते जाते हैं,
बस आगे बढ़ते जाते हैं
कितनी जल्दी भूल जाते हैं
माँ के दूध के कर्ज को
ममता के प्रति फर्ज को
आँसू बन छलके अरमान को
पिता के योगदान को
उसके अनुभव और ज्ञान को
मान और सम्मान को
भूल किसी मृग-तृष्णा में खो जाते हैं
भूलभुलैया में खोकर रह जाते हैं
कितनी जल्दी भूल जाते हैं
बड़े होकर अपने को
बूढी आँखों के सपने को
दादा-दादी नाना-नानी को
उनसे सुनी कहानी को
उस प्यार के भण्डार को
उस छोटे से संसार को
छोड़ बड़ी सी दुनिया में खो जाते हैं
उस दुनिया के ही खोकर रह जाते हैं
कितनी जल्दी भूल जाते हैं
द्वारा: सुधीर शर्मा