कविताअतुकांत कविता
बजादो बिगुल क्रान्ति का
ग़र आबाद होती
जिंदगानियाँ
धरो रूप मंगल पांडे का
ग़र सुलगाना है
चिंगारियाँ
कुत्सित खेल कुचालों का
रानी झाँसी की वो
चुनौतियाँ
खौफ़ दंगों व आतंक का
प्रतिबंधित हो ये खून
की नदियाँ
सफ़ाया दुश्मन देशों का
ग़र बचाना हैं हमको
सरहदियाँ
क्यूँ चले नाटक हवस का
गुहार करती हमारी
बेटियाँ
ग़र भला ना हो किसीका
फ़िर क्यूँ करते सदा
बुराइयाँ
बचाना अस्तित्व सृष्टि का
प्रदूषित ना हो यह
दुनिया
सरला मेहता