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बजादो बिगुल - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

बजादो बिगुल

  • 120
  • 3 Min Read

बजादो बिगुल क्रान्ति का
ग़र आबाद होती
जिंदगानियाँ
धरो रूप मंगल पांडे का
ग़र सुलगाना है
चिंगारियाँ
कुत्सित खेल कुचालों का
रानी झाँसी की वो
चुनौतियाँ
खौफ़ दंगों व आतंक का
प्रतिबंधित हो ये खून
की नदियाँ
सफ़ाया दुश्मन देशों का
ग़र बचाना हैं हमको
सरहदियाँ
क्यूँ चले नाटक हवस का
गुहार करती हमारी
बेटियाँ
ग़र भला ना हो किसीका
फ़िर क्यूँ करते सदा
बुराइयाँ
बचाना अस्तित्व सृष्टि का
प्रदूषित ना हो यह
दुनिया
सरला मेहता

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

चैतन्यपूर्ण

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बढ़िया

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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