कहानीसंस्मरणव्यंग्य
"मेरी भुलक्कड़"
"अक्सर चीजो को रखकर भूल जाती हूँ"।
"कुछ दिनों पहले की ही बात है।
पतिदेव ने कहा -अरे!!"मेरी गाड़ी की आर.सी देना"।। याद तो है ना कहा रखी हैं या भूल गई हो।।
मैने कहा-"ऐसे कैसे भूल सकती हूँ, मेरी याददाश्त इतनी कमजोर भी नही है कि घर मे रखी चीजो को भूल जाऊ...मैंने इतराते हुए कहा।।
"ठीक है!! "भाग्यवान अब जब आर.सी (रजिस्ट्रेशन कार्ड) तुम्हारे हाथ नीचे ही रखी हैं,तो कृपया देने का कष्ट करें,पतिदेव ने बड़े ही मजाकिया अंदाज में कहा।।
मैने अपनी अलमारी खोली औऱ जहाँ पर मैं अपने जरूरी कागजात रखती हूं,वहाँ पर आर.सी देखने लगी।।
लेकिन ये क्या वहाँ तो रजिस्ट्रेशन कार्ड था ही नही।। अब सब जगह उस कार्ड को खोजने लगी।। औऱ खुद को कोसने लगी कि आखिर कहा रखकर भूल गयी हूँ मैं गाड़ी की आर. सी।
उधर पतिदेव खड़े खड़े मुस्कुरा रहे थे,औऱ बोल रहे थे कि...क्या हुआ मिली या नही आर. सी।
उनको हसंता देख मुझे बड़ा गुस्सा आ रहा था,,लेकिन करती भी क्या ?
"सब जगह ढूंढ ली गाड़ी की आर. सी लेकिन कही नही मिली"।
तब थक हार कर बैठ गयी... तब याद आया कि पति देव को ही तो दिए थे उसदिन गाड़ी के कागज।।
अब समझ आया सायद पति देव मेरी याददाश्त की परीक्षा ले रहे थे ।।
"मैने तुंरत पतिदेव से कहा-आप ही के पास तो है गाड़ी की आर.सी।।
"पतिदेव बोले-हाँ!!"मेरी भुलक्कड़ मेरे पास ही हैं गाड़ी की आर. सी"! "मैं तो तुम्हारी याददाश्त को परख रहा था।।
यह सुनकर मैं जोर से हँस पड़ी।
ममता गुप्ता
अलवर राजस्थान