कवितालयबद्ध कविता
स्वरचित मौलिक :: प्रेम पथिक
चाह मेरी मैं राधा बन जाऊं
वंशी की धुन पर दौड़ी आऊं
गोपियों संग नाचूं थिरकू
कान्हा की मुरली बन जाऊं
मैं प्रेम पथिक कहलाऊं!!!
चाह मेरी मैं मीरा बन जाऊं
नित नए भजन मैं गांऊ
कृष्ण की भक्ति में खो जाऊं
गिरधर की दीवानी बन जाऊं
मैं प्रेम पथिक कहलाऊं!!!
चाह मेरी मै कली से फूल बन जाऊं
फूलो की माला बन गूंथी जाऊं
वीरो के गले का हार बन जाऊं
अपने भाग्य पर इतराऊं इठलाऊं
मैं प्रेम पथिक कहलाऊं!!!
प्रियंका पांडेय त्रिपाठी
प्रयागराज उत्तर प्रदेश