कविताअतुकांत कविता
भोपाल गैस त्रासदी पर
मौत का पैगाम
निजी स्वार्थी कुचालें ने
दिए हैं कुत्सित अंजाम
रिहायशी ही इलाकों में
लगा लेते अपनी दुकान
जहरीला व्यापार करते
नियमों को रखते ताक
तालों की नगरी में बरपा
हुआ हादसा गैस रिसाव
दम घुटे व मची भगदड़
रास्ते थे बन गए श्मशान
तांगे का घोड़ा बुत बना
आना जाना ठप्प हुआ
ट्रेनें थी मुसाफ़िर खाना
बची जानों में साँसे बची
कई रोगों से हैं संक्रमित
जी रहे हैं अधूरा जीवन
मुआवजा भर मिल पाया
दंडित न होपाए अपराधी
बिना सुरक्षा के उपायों के
ऐसे प्लांट्स नहीं लगाए
सरला मेहता