लेखअन्य
इतने साल गुजर गए
हो सकता है तुम्हें याद हो भी ....या न हो
लेकिन मुझे बख़ूबी याद है...जब हम मिले थे ....पहली दफ़ा.... जब मुझे ख़ुद पर ये विश्वास नहीं हो रहा था कि मेरे हाँथ में वो तुम्हारा ही हाँथ था ...जैसे कैद कर लेना चाह रहे थे .....तुम्हें याद है रश्मि...?जब तुमने मेरे हाँथों की लकीरों को देखकर अचानक से ख़ुश हो गयी थी!
फिर एक झटके में चेहरे पर उदासी ने पहरा दे दिया।
मैं कुछ समझ पाता इससे पहले ही तुमने ठीक दिखने की एक नाकाम कोशिश की....
और वक़्त......वक़्त भी अपनी रफ़्तार को जैसे किसी बुलेट ट्रेन से कम नहीं करना चाह रहा था और बातें....बातें तो किसी पैसेंजर की तरह तुम्हारे होंठो पर आकर ठहर जाती थी...
सारी बातें कर लेना चाहता था..
चाहता था कि सूरज को आज यहीं रोक लूँ....
हवायों को यहीं समेट लूँ...
और कर लूं जी भर के तुमसे बातें ...
न जाने दूँ तुम्हें... कहीं भी..
हों तो सिर्फ़ हम दोनों...होंठों को तुम्हारे होंठों पर रखना चाह रहा था,
महसूस करना था...
साँसों से होकर गुज़रना था तुमसे...तुम्हें ख़ुद मैं होकर जीना चाहता था...भूल जाना चाहता था ख़ुद को..
हमेसा के लिए...
✍️गौरव शुक्ला'अतुल'
अच्छी है मगर कुछ अधूरी सी लगी
जैसे ज़िन्दगी साल दर साल बढ़ती जाती है,ठीक वैसे ही डायरी में छिपे हर एक पन्नें की अपनी ही एक कहानी है,शायद इसीलिए अधूरी लगी...शुक्रिया आपका मैंम❣️