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संस्मरण,,,,,#.किस्सा कहानी
" होई सोई जो राम रची राखा"
हमारे यहाँ शादी ब्याह के मामलों में संयोग को ही सर्वोपरि मानते हैं। यह भी कहा जाता है कि जोड़ियाँ स्वर्ग से बन कर आती है।
कुछ ऐसा ही किस्सा मेरे साथ हुआ। मैं ठेठ देहात के किसान की बेटी हूँ। एक रूढ़िगत रिवाज़ों वाले परिवार में पली बढ़ी। आठवीं कक्षा से ही मुझे सर ढकी सीधे पल्लू की साड़ी पहना दी गई।
बस तभी से रिश्तों की चर्चाएँ भी ज़ोर शोर से होने लगी। लड़के वाले आते गए और मेरी पढ़ाई भी जारी रही। चूँकि पढ़ाई में अव्वल आती थी तो मेरी मासी मुझे इंदौर ले आई। कॉलेज में आने तक मेरी दो छोटी बहनों की सगाइयाँ हो चुकी थी। लायक लड़के की खोज भी साथ साथ चलती रही। इसी तरह बी ए करके एम् ए में आ गई। लड़के कहते, बाबा रे ऐसी पढ़ाकू लड़की से दूरी भली। वैसे भी मैं ज़रा संस्कारी सादगी पसंद थी,फेशनेबल नहीं।
योग से फ़ायनल में जाकर मेरी किस्मत जागी। रिज़ल्ट अवश्य शादी के बाद आया। यह वाक़या मैं कभी नहीं भुला सकती कि सात फ़ेरों के चक्कर में मुझे पढ़ाई का उद्यापन करना पड़ता।
सरला मेहता