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छुअन,,,,,,तेरे रूप अनेक - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

छुअन,,,,,,तेरे रूप अनेक

  • 176
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छुअन,,,,तेरे रूप अनेक

काँटों की चुभन

छुअन बन जाती दंश
ताउम्र रह जाते
ज़ख्मों के पैबंद
बन्द हो जाते हैं
जीने के सारे दरवाज़े
दस्तक देती रहती
तार तार हुई देह को
ज़हरीले काँटों की चुभन
भुलाए नहीं भूलती है


फूलों की महक

छुअन नाल से कटे
अपने ही अंश की
विदा होती लाड़ो की
कूच कर गए अपनों की
उस सैनिक सनम की
दे गया निशानी पेशानी पे
पिया के अंश की
फूलों की महक सी वो
रच बस जाती हैं यादों में

सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

सुंदर

Amrita Pandey

Amrita Pandey 3 years ago

Wah...?

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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