कहानीप्रेम कहानियाँ
पहले पंखुड़ी ने ऐसा कभी रुमानी महसूस नहीं किया था। आसमान की ओर आंख उठाकर देखती है तो उससे सतरंगी इंद्रधनुष ही नजर आता है। दूर निगाह डालती है तो जमीन -आसमां के गले लगती दिखती है। वह खो जाती है, अपने उन्हीं रुमानी ख्यालों में कि कब वह पूरी तरह समीर की हो पाएगी!
अचानक उसने महसूस किया कि समीर बहुत देर से गुमसुम बैठा है। इतनी देर से उसने कुछ भी तो नहीं कहा है।
उसने अपनी गुलकंद सी मीठी जबान में पूछा," समीर, किस ख्याल में उलझे हो, सॉरी क्या नाराज हो मैं भी न जाने किन कल्पनाओं में खोई थी।"
"नहीं ..कुछ नहीं... वह ..मैं ..मैं सोच रहा था "आंखें दूसरी ओर घुमाकर ,"तुमसे कुछ पूछना चाहता था!"समीर ने जरा हकलाते हुए कहा।
"हां ,हां पूछो ना ,अब हमारे तुम्हारे बीच यह संकोच कब से शुरु हो गया?"पंखुड़ी ने समीर का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा।
"पंखुड़ी ,क्या तुम मेरे नाम का अर्थ जानती हो ?"
"भला यह भी कोई पूछने की बात हुई ,समीर ? यह कैसा सवाल हुआ , क्या इसके लिए तुम इतना परेशान थे?"खिलखिला कर हंस पड़ी पंखुड़ी।
"पंखुड़ी, दरअसल मैं एक मुस्लिम हूं, समीर हिंदू नहीं, क्या यह जानने के बाद भी तुम मुझसे रिश्ता कायम रखना चाहोगी और शादी करना चाहोगी?
"समीर, मुझे दुख और आश्चर्य तो है कि तुमने मुझे पहले यह सब क्यों नहीं बताया! बता देते तो.. तो अच्छा था।मगर फिर भी मेरा यह मानना है कि प्यार जाति और धर्म नहीं देखता। तुम मुझे पंखुड़ी ही रहने देना, मैं तुम्हें समीर ही रहने दूंगी। समीर के बहने से ही पंखुड़ी फूल में बदलेगी और हमारे प्रेम की बगिया महकेगी।"
" नहीं, पंखुड़ी मेरे घरवाले चाहते हैं कि शादी के लिए तुम इस्लाम अपना लो, बोलो, क्या तुम इसके लिए राजी हो ?"
"समीर ,प्यार हम दोनों के बीच हुआ है, इसमें धर्म कहां से आ गया ?अगर मैं अपना धर्म नहीं बदलती हूं तो क्या हमारा रिश्ता खत्म हो जाएगा?अच्छा तो यह हो कि ना मैं अपना धर्म बदलूं ना तुम अपना धर्म बदलो। इंसानियतही धर्म हो,प्रेम ही धर्म हो।"
"पंखुड़ी, बड़ी-बड़ी बातें मत समझाओ।प्यार के लिए तो लोग अपनी जान तक दे देते हैं, मैं तो तुमसे सिर्फ तुम्हारा धर्म बदलने को कह रहा हूं।"
"समीर, धर्म जान से भी बड़ा होता है।तुमने इतनी बड़ी बात छुपाई ,फिर भी मैंने कुछ नहीं कहा, क्योंकि मेरा तुम्हारे प्रति प्यार सबसे ऊंचा है, मगर महसूस कर रही हूं कि तुम्हें मेरी भावनाओं की कुछ भी कद्र नहीं है।"
"तुम मुझे गलत मत समझो ,पंखुड़ी। मैं हर तरह से तुम्हारा ख्याल रखूंगा ,बस, तुम्हें...."
"अभी भी..!माफ करना समीर,.. मैं तुम्हें गलत समझी थी, या शायद मुझे अपने प्यार पर कुछ ज्यादा ही यकीन था!"
बहुत सुंदर मेरा भी यही मानना है कि प्रेम और धर्म इन दोनों को अलग ही रहना चाहिये। यह हमारी इच्छा है कि हम क्या करें क्या नही काश की हर लड़की इतनी ही समझदार हो किसी से भी प्रेम करने के लिए।
जी, लड़कियों में समझदारी हो तब कानून बनाने की जरूरत ही नहीं होगी। अभिभावकों को भी बच्चों से हर नाज़ुक विषय पर बात करनी चाहिए।