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बारिश की बूंदें - Pragati Tripathi (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

बारिश की बूंदें

  • 138
  • 4 Min Read

बारिश की ये बूंदें जब मेरे चेहरे को छू जाती है
तन में और मन में एक मीठी अगन जगाती हैं
ले जाती है उन गलियों में  जो बचपन की याद दिलाती है
बारिश की ये बूंदें......।
मन करता है बन जाते हम फिर से बच्चे
करते फिर से वही अठखेलियां
जिसे देख मां तू मंद - मंद मुस्काती थी
बारिश की ये बूंदें......।

कभी दुलारती, कभी फटकारती
कभी हमको सीने से लगाती
उसकी धुरी थे हम, वो हमारी धुरी बन जाती थी
बारिश की ये बूंदें ........।
वर्षों हो गए मां, तेरी मीठी आवाज सुने
चली गई तू हमें छोड़कर
खाली सा संसार दिए
सावन का ये मौसम अंतस में आग लगाती है
बारिश की ये बूंदें मां तेरी याद दिलाती है
बारिश की ये बूंदें मां तेरी याद दिलाती है।

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

बहुत खूब

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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मुझ से मुझ तक का फासला ना मुझसे तय हुआ
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