कविताअतुकांत कविता
बारिश की ये बूंदें जब मेरे चेहरे को छू जाती है
तन में और मन में एक मीठी अगन जगाती हैं
ले जाती है उन गलियों में जो बचपन की याद दिलाती है
बारिश की ये बूंदें......।
मन करता है बन जाते हम फिर से बच्चे
करते फिर से वही अठखेलियां
जिसे देख मां तू मंद - मंद मुस्काती थी
बारिश की ये बूंदें......।
कभी दुलारती, कभी फटकारती
कभी हमको सीने से लगाती
उसकी धुरी थे हम, वो हमारी धुरी बन जाती थी
बारिश की ये बूंदें ........।
वर्षों हो गए मां, तेरी मीठी आवाज सुने
चली गई तू हमें छोड़कर
खाली सा संसार दिए
सावन का ये मौसम अंतस में आग लगाती है
बारिश की ये बूंदें मां तेरी याद दिलाती है
बारिश की ये बूंदें मां तेरी याद दिलाती है।