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पहले पंखुड़ी ने ऐसा कभी रुमानी महसूस नहीं किया था। आसमान की ओर आंख उठाकर देखती है तो उससे सतरंगी इंद्रधनुष ही नजर आता है। दूर निगाह डालती है तो जमीन -आसमां के गले लगती दिखती है। वह खो जाती है, अपने उन्हीं रुमानी ख्यालों में कि कब वह पूरी तरह समीर की हो पाएगी!
अचानक उसने महसूस किया कि समीर बहुत देर से गुमसुम बैठा है। इतनी देर से उसने कुछ भी तो नहीं कहा है।
उसने अपनी गुलकंद सी मीठी जबान में पूछा," समीर, किस ख्याल में उलझे हो, सॉरी क्या नाराज हो मैं भी न जाने किन कल्पनाओं में खोई थी।"
"नहीं ..कुछ नहीं... वह ..मैं ..मैं सोच रहा था "